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________________ कर्माधीन हैं । अपने-अपने कर्म के अनुसार सभी जीवात्माएँ सुखदुःख प्रादि प्राप्त करती हैं । सभी जीवात्मानों के कर्मों में तरतमता है, इस तरतमता के कारण ही सभी जीवों की स्थिति समान नहीं है । किसी आत्मा के मोहनीय कर्म का तीव्र उदय है, इस कारण वह रागान्ध / कामान्ध बन गया है । अपने छोटे भाई की पत्नी के प्रति ही मोहित बन गया है, वह उसके रूप का पिपासु है । परन्तु छोटे भाई की पत्नी एक सती सन्नारी है, वह अपने ज्येष्ठ से हितकर बात करती है । परन्तु वह कामान्ध व्यक्ति भाई की पत्नी को पाने के लिए अपने हाथों ही भाई की हत्या कर देता है । परन्तु वह सती सन्नारी अपने शील के रक्षरण के लिए जंगल में पलायन कर जाती है, इधर उस कामान्ध व्यक्ति की भी सर्पदंश से मृत्यु हो जाती है और वह मरकर नरक में चला जाता है । है ! और देखो उस तापस को । कितना उग्र तप कर रहा मासक्षमण के पारणे मासक्षमण ! लाखों वर्षों से वह यह तपस्या कर रहा है परन्तु श्राज वह क्रोध के अधीन बन गया है । तप से शरीर को कृश कर दिया है, परन्तु कषायों को कृश नहीं कर पाया । अहो ! उस हृदय में क्रोध की ज्वालाएँ कितनी भड़क रही हैं ? वह तापस उस राजा को हर भव में अपने हाथों से मारने का निदान कर रहा है । " और वह मम्मरण सेठ ! अहो ! अपार धन-सम्पत्ति शान्त सुधारस विवेचन - २२०
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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