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________________ तैयार ही नहीं है, तो डॉक्टर भी क्या कर सकता है, इसी प्रकार जिन जीवों में धर्म के प्रति कोई अनुराग या आस्था ही नहीं है, उन जीवों के दुःख-निवारण के लिए हम अधिक क्या कर सकते हैं ? एक मात्र उनके प्रति दया का चिन्तन करना, यही एक उपाय है। वर्तमान काल में भौतिकवाद की आंधी तेजी से प्रागे बढ़ रही है। चारों ओर भौतिकवाद पनप रहा है, भौतिकवादी जीवों के हृदय में धर्म के प्रति अनुराग कहाँ से पैदा हो ? ग्रन्थकार महर्षि ऐसे धर्महीन जीवों के प्रति भी भावकरुणा धारण करने का उपदेश देते हैं। परदुःखप्रतिकार - मेवं ध्यायन्ति ये हृदि । लभन्ते निर्विकारं ते, सुखमायतिसुन्दरम् ॥ २०८ ॥ (अनुष्टुप) अर्थ-जो इस प्रकार अन्य के दुःखों को दूर करने का चिन्तन करते हैं, वे सुन्दर परिणाम वाले निर्विकारी सुख को पाते हैं ।। २०८ ।। विवेचन करुणा से सुख-प्राप्ति जो आत्मा अन्य के दुःख निवारण की चिन्ता करती है, वह प्रात्मा इस प्रकार की शुभ भावना से शुभ कर्म का बन्ध करती है। वह शुभ कर्म उस आत्मा को भविष्य में महान् सुख प्रदान करता है। शान्त सुधारस विवेचन-१६८
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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