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________________ मंगल रूप है। भयंकर से भयंकर संकटकाल में भी अपने शील का रक्षरण करने वाली सीता, अञ्जना, सुरसुन्दरी, कलावती, सुभद्रा तथा मदनरेखा आदि सतियों के जीवन-चरित्र से हमें बहुत ही प्रेरणा मिलती है। सीता के शील के प्रभाव से ही अग्नि भी जल में बदल गई थी। जिनेश्वर भगवन्तों ने पाँच इन्द्रियों की वासनाओं पर विजय पाने के लिए शील धर्म का उपदेश दिया है। (३) तप-एक ओर हजारों क्विन्टल लकड़ी का ढेर हो और दूसरी ओर जलती हुई एक ही दियासलाई। दोनों में किसका बल अधिक होगा? स्पष्ट ही है एक जलती हुई दियासलाई हजारों क्विन्टल लकड़ी के ढेर को भी भस्मसात् कर सकती है। बस; अनादिकाल से संचित कर्म लकड़ी के ढेर तुल्य हैं और तप जलती हुई दियासलाई तुल्य है। अनादि से संचित कर्मों को नष्ट करने में तप धर्म पूर्णतया समर्थ है किन्तु हाँ, वह तप जिनेश्वर की आज्ञा के अनुरूप होना चाहिये। जिनाज्ञायुक्त अल्प तप भी अधिक फलदायी है और जिनाज्ञा रहित दीर्घ तप भी निष्फल है। तप से अनादिकालीन आहार संज्ञा को जीता जा सकता है। अरणाहारी पद की प्राप्ति के अभ्यास रूप तप धर्म का अवश्य आचरण करना चाहिये। यह तप बाह्य और अभ्यन्तर के भेद से दो प्रकार का और अनशनादि के भेद से बारह प्रकार का बतलाया गया है, जिसका विस्तृत वर्णन निर्जरा भावना के अन्तर्गत किया गया है। तप आत्मा के लिए महामंगलभूत है। तप से आत्मा स्वयं मंगलमय बन जाती है, जिससे बाह्य-अभ्यन्तर सभी विघ्न पलायन कर जाते हैं। शान्त सुधारस विवेचन-४
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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