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________________ हरिशंकर के दिल में रविशंकर के प्रति ईर्ष्या पैदा हो गई, परन्तु वह कर भी क्या सकता था। उसने यक्ष की बात स्वीकार कर ली। घर पाकर उसने अपने नवीन भवन के निर्माण के लिए यक्ष से प्रार्थना की। तत्काल यक्ष ने उसके लिए एकमंजिले भवन का निर्माण कर दिया और इसके साथ ही रविशंकर के लिए दो मंजिला भवन भी तैयार कर दिया। हरिशंकर ने अपने लिए एक हजार मोहरें मांगी, उसी समय उसे हजार सोना मोहरें"मिल गईं, परन्तु रविशंकर को उससे दुगुनी मिल गईं। इस प्रकार रविशंकर को हर वस्तु दुगुनी-दुगुनी मिलने से हरिशंकर का मन ईर्ष्या से जलने लगा। ईर्ष्यालु व्यक्ति अन्य के उत्कर्ष को देखकर बहुत जलता है । वह अपने दुःख को सहन कर लेगा, किन्तु अन्य के उत्कर्ष को सहन नहीं कर पाता है। ईर्ष्यालु व्यक्ति अपना थोड़ा नुकसान करके भी अन्य का बड़ा नुकसान करना चाहता है। हरिशंकर ने यक्ष से प्रार्थना की कि 'मेरे घर के सामने एक कुआ खोदा जाय।' तत्काल यक्ष ने उसके घर के सामने एक कुप्रा खोद दिया और पड़ोसी रविशंकर के घर के सामने दो कुए खोद दिए। फिर उसने यक्ष से प्रार्थना की-"मेरी एक आँख फोड़ दी जाय।" यक्ष ने उसकी एक आँख फोड़ दी और इसके साथ ही रविशंकर की दोनों आँखें फोड़ दी। शान्त सुधारस विवेचन-१५०
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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