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________________ तयोकाभावनाष्टकम् (राग-टोडी) विनय विचिन्तय मित्रता, त्रिजगति जनतासु । कर्मविचित्रतया गति , विविधां गमितासु ॥ विनय० १७९ ॥ अर्थ-हे विनय ! कर्म की विचित्रता से विविध गतियों में जाने वाले त्रिजगत् के प्राणियों के विषय में मंत्री का चिन्तन कर ।। १८६ ॥ - विवेचन जगत् के जीवों के प्रति मैत्री रखो पूज्य उपाध्याय श्रीमद् विनय विजयजी म. अपनी आत्मा को सम्बोधित करते हुए फरमाते हैं कि हे विनय ! हे आत्मन् ! संसार के समस्त जीवों के प्रति तू मैत्री भाव धारण कर। किसी पशु आदि के मलिन देह को देखकर तू उससे घृणा मत कर । किसी को विकलाङ्ग देखकर उसका उपहास मत कर। किसी को मूर्ख या बुद्धिहीन जानकर उसका तिरस्कार मत कर। किसी को अत्यन्त दुःखी जानकर उसकी उपेक्षा मत कर। बल्कि शान्त सुधारस विवेचन-१३०
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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