SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महोपाध्याय श्री विनय विजयजी म. की प्रस्तुत कृति 'शान्त सुधारस' अत्यन्त ही भाववाही कृति है। इसमें अनित्य आदि भावना प्रों का बहुत ही सुन्दर व मर्मस्पर्शी वर्णन है। अत्यन्त लय के साथ यदि गाया जाय तो परम आनन्द की अनुभूति हुए बिना नहीं रहती। 'शान्त सुधारस' के ये शब्द सुषुप्त चेतना को जागृत करने में पूर्णतया सशक्त हैं। परम पूज्य जिनशासन के अजोड़ प्रभावक सुविशाल गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. की असीम कृपादृष्टि, परम पूज्य अध्यात्मयोगी निःस्पृहशिरोमणि परमोपकारी गुरुदेव पंन्यासप्रवर श्री भद्रंकर विजयजी गणिवर्यश्री को सतत कृपावृष्टि व प. पू. सौजन्य मूर्ति प्राचार्यदेव श्रीमद् विजय प्रद्योतन सूरीश्वरजी म. सा. के शुभाशीर्वाद से मैंने इस ग्रन्थ के हिन्दी विवेचन का प्रयास प्रारम्भ किया । उपयुक्त पूज्यों की असीम कृपा तथा प. पू. सहृदय पंन्यासप्रवर श्री वज्रसेन विजयजी म. सा के मार्गदर्शन और प. पू. परम तपस्वी सेवाभावी मुनि श्री जिनसेन विजयजी म. सा. की सहयोगवत्ति से इस ग्रन्थ-विवेचन का प्रल्प प्रयास करने में सक्षम बन सका हूँ। वि. सं. २०३६ के पाली चातुर्मास की अवधि में इस ग्रन्थ पर विवेचन लिखना प्रारम्भ किया था। इस विवेचन की पूर्णाहुति तो दूसरे ही वर्ष हो चुकी थी परन्तु इसके प्रकाशन में संयोगवश विलम्ब हो गया। आज पुनः वि. सं २०४५ में प. पू. सौजन्यमूर्ति प्राचार्य श्रीमद् विजय प्रद्योतनसूरीश्वरजी म सा. आदि के पाली चातुर्मास दरम्यान ही इस विवेचन ग्रन्थ-रत्न का प्रकाशन होने जा रहा है, यह अत्यन्त ही खुशी की बात है। सोने में सुगन्ध रूप इस चातुर्मास में प्रवचन भी इसी 'शान्त-सुधारस' ग्रंथ के आधार पर हो रहे हैं । प. पू. विद्वद्वयं प्राचार्यप्रवर श्री यशोविजय सूरिजी म. ने विवेचन
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy