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________________ और नीति के मार्ग को भी भूल जाता है और येन-केन प्रकारेण धन इकट्ठा करने के लिए मेहनत करता है और इस कारण वह धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ को भूल जाता है । एक अपेक्षा से काम पुरुषार्थ से भी अर्थ पुरुषार्थ हीन गिना गया है। कामान्धता से भी अर्थान्धता अधिक भयंकर है। धन के लोभ में अन्धे बने व्यक्ति के विवेकचा पर आवरण प्रा जाता है और उसके सोचने-समझने की दृष्टि लुप्त हो जाती है। मैथुन संज्ञा की प्रबलता होने पर व्यक्ति कामान्ध बन जाता है। कामान्ध व्यक्ति जहाँ-तहाँ से अपनी वासना की पूर्ति के लिए प्रयत्नशील रहता है। इस संज्ञा की प्रबलता होने पर परस्त्रीगमन व वेश्यागमन जैसे भयंकर पाप भी जीवन में घुस जाते हैं। भय संज्ञा भी जीवात्मा को धर्म करने में बाधा पहुँचाती है। इस प्रकार इस विश्व में चारों ओर चारों संज्ञाओं की प्रबलता होने से धर्म-श्रवण की इच्छा भी विरल प्रात्मा को ही होती है। पाहार संज्ञा की प्रबलता के कारण कंडरीक मुनि का पतन हुआ। मैथुन संज्ञा की प्रबलता के कारण मरिणरथ ने अपने छोटे भाई युगबाहु की हत्या की। परिग्रह संज्ञा की प्रबलता के कारण मम्मण सेठ मरकर ७वीं नरक भूमि में गया। शान्त सुधारस विवेचन-६५
SR No.022306
Book TitleShant Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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