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________________ सेठजी तो यह सुनकर भोचक्के रह गए और सोचने लगे"अहो ! जिनके लिए जोवन भर का परिश्रम उठाया उसका यह परिणाम ? सेठजी ने नम्र स्वर से कहा - "भाई ! ऐसी बात क्या करते हो ? ऐसा अन्याय ? मैंने तो तुम्हारे लिए झूठ बोला, चोरी की । सभी प्रकार का पापाचरण किया, यहाँ तक कि मैंने अपने शरीर की भी परवाह नहीं की । खाया न खाया, बे- समय खाया और सतत तुम्हारी चिन्ता में जलता रहा, फिर भी तुम्हारी ओर से यह परिणाम ?" सेठजी की इस बात को सुनकर सभी का गुस्सा दुगुना हो गया, सभी एक ही गर्जना से बोल उठे - " सेठजी ! बन्द करो बकवास | आपको कल जाना हो तो आज चले जाएँ, हम तो अपने स्थान से एक इंच भर भी हटने वाले नहीं हैं और ज्यादा बकवास रहने दो । आपको जलाने की लकड़ियाँ भी हम ही लायेंगे ।" यह सुनकर सेठजी निराश हो गए। फिर पहुँचे अपनी प्रिया के पास । बोले - "प्रिये ! मैंने जीवन भर तेरे लिए बहुत कुछ किया है । तेरी हर इच्छा की पूर्ति की है और तेरे मनोरथ को पूर्ण करने के लिए न मालूम मैंने कितने पाप किए हैं। स्वर्ण के आभूषण बनवाने के लिए मैंने कई लोगों को ठगा है .... मैंने अपने शरीर को आभूषणों से सज्जित नहीं किया और सभी प्राभूषण तुझे ही सौंपे है ।" पत्नी बीच में ही बोल उठी-"स्वामिन्! आखिर यह सब कहने के पीछे आपका आशय क्या है ?" शान्त सुधारस विवेचन- ४८
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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