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________________ किसी की शव यात्रा को तूने देखा तो यही सोचा कि 'बेचारा ! मर गया ।' परन्तु उसकी मौत में तुझे जीवन की श्रनित्यता के दर्शन नहीं हुए और अपने जीवन को तो तू शाश्वत ही मानता रहा । महापुरुषों का फरमान है कि जीवन क्षणभंगुर है । दूसरे की मौत में अपनी मृत्यु के दर्शन करो । जीवन की इस अनित्यता को समझकर प्रमाद का त्याग करो, क्योंकि मनुष्यजीवन का प्रत्येक क्षरण अत्यन्त ही कीमती है । महान् पुण्य के उदय से यह जीवन मिला है, अतः इसे व्यर्थ ही मत खो दो । मनुष्य-जीवन के कीमती क्षणों को क्षणिक सुख के पीछे व्यतीत कर देना, एक प्रकार का पागलपन ही है । क्षणिक सुख की दौड़ में अनन्तकाल व्यतीत कर दिया, परन्तु कुछ भी सुख हाथ नहीं लगा । अतः अब स्व-जीवन की अनित्यता को समझने का प्रयास करो और आत्मा के भयंकर शत्रु प्रमाद को समाप्त कर डालो । किसी कवि ने ठीक ही कहा है इन्सान खो के वक्त को पाता नहीं कभी । जो दम गुजर गया, वह फिर श्राता नहीं कभी ॥ भविष्य अपने हाथों में नहीं अतः सावधान बन जायें । है और जो काल बीत चुका नहीं है । मात्र वर्तमान ही अपने हाथों में है, अतः सावधान है, वह पुनः हाथ लगने वाला आत्म - कल्याण के पथ में बन प्रमाद का त्याग कर जागरूक बनो । शान्त सुधारस विवेचन- ३८
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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