SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बस, इसी के समान तेरा जीवन है । जरा सोच । वैभव और विलास के रंग-राग में इतना मस्त क्यों बन रहा है ? तेरा जीवन ही जब क्षरणभंगुर है, तब तेरा यह परिश्रम किस बात के लिए ? पचास-पचास वर्ष के दीर्घ परिश्रम के बाद एक व्यक्ति चार मंजिल के आधुनिक डिजाइनदार मकान का निर्माण करता है । नवीनतम फर्नीचर और रंगों से मकान को सुसज्जित करता है । परन्तु प्राश्चर्य ! उस मकान का वह भोग करे, उसके पहले तो वह इस संसार से चिर- विदाई ले लेता है । क्या फल हुआ इतने परिश्रम और पुरुषार्थ का ? ..... संग्रह और सर्जन बहुत किया किन्तु गए खाली हाथ ही । किसी कवि की ये पंक्तियाँ याद आ जाती हैं हजारों ऐश के सामान, मुल्ले और मालिक थे । सिकन्दर जब गया दुनिया से दोनों हाथ खाली थे ॥ 1 पूज्य उपाध्यायजी महाराज प्रस्तुत श्लोक के द्वारा जीवन की अनित्यता समझा रहे हैं । यदि मनुष्य जीवन की इस अनित्यता को समझ ले तो वह बहुत कुछ सावधान हो सकता है । मनुष्य-जीवन दुर्लभ है और प्राप्त जीवन क्षणभंगुर है । इस मनुष्य जीवन के माध्यम से जीवात्मा आत्मकल्याण कर शान्त सुधारस विवेचन- २६
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy