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________________ ये बारह भावनाएँ श्रुतज्ञान से पवित्र बनी हुई हैं । इनके श्रवण से आत्मा के विवेक चक्षु खुल जाते हैं और आत्मा को सन्मार्ग की दिशा का ज्ञान होता है । इन भावनाओं के श्रवरण से हृदय में समता रूपी कल्पलता भी उगती है । समता प्रर्थात् सम भावना । सुख-दुःख, शत्रु-मित्र, स्वर्ण - तृरण में सम भावना की प्राप्ति समता से ही होती है और उस समता की प्राप्ति इन भावनाओं के स्वाध्याय से होती है । श्रार्त्तरौद्रपरिणामपावक प्लुष्टभावुकविवेक सौष्ठवे 1 क्व प्ररोहतितमां शमाङ्कुरः ।। ५ ।। ( रथोद्धता ) मानसे विषयलोलुपात्मनां, अर्थ - प्रातं और रौद्रध्यान ( परिणाम ) रूपी अग्नि से भावना रूपी विवेक चातुर्य जिसका जल कर नष्ट हो चुका है और जो विषयों में लुब्ध है, ऐसी आत्मा के मन में समता रूपी अंकुर कैसे प्रगट हो सकते हैं ? ।। ५ ।। विवेचन समता के लिए समस्या समता की प्राप्ति आसान बात नहीं है । उसकी प्राप्ति में अनेक विघ्नों की परम्परा का सामना करना पड़ता है । जिसका मन श्रार्त्त और रौद्र ध्यान से सतत संतप्त बना हुआ हो और शान्त सुधारस विवेचन- ९
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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