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________________ साथ ही चौदह राजलोक के समस्त जीवों को क्षणभर के लिए परम शान्ति का अनुभव होता है। नरक के घनघोर अन्धकार में भी प्रकाश की किरण फैल जाती है। तीर्थंकरों के जन्मकल्याणक के समय नरक व निगोद के जीवों को भी सुख का अनुभव होता है। उनके जन्म के साथ ही सौधर्म का आसन कम्पित होने लगता है और वे पाकर प्रभु और प्रभु की माँ को नमस्कार करते हैं और पाँच रूप कर प्रभु को मेरुपर्वत पर ले जाते हैं, जहाँ करोड़ों देवता पाकर प्रभु का भव्य जन्माभिषेक महोत्सव करते हैं। प्रभु को गर्भ में भी तीन ज्ञान होते हैं । जन्म के बाद भी उनका सांसारिक जीवन विरक्ति से भरपूर होता है। ज्योंही उनके भोगावली कर्म क्षीण हो जाते हैं, त्योंही वे संसार के बन्धनों का त्याग कर संयम-मार्ग को स्वीकार कर लेते हैं। फिर कठोरतम साधना कर केवलज्ञान प्राप्त करते हैं। स्वयं कृतकृत्य होने पर भी एकमात्र भव्य जीवों के कल्याण के लिए प्रतिदिन दो प्रहर तक धर्मदेशना देते हैं। उनका सम्पूर्ण जीवन परोपकारमय होता है। उनके गुणों का वर्णन करने में सर्वज्ञ केवली भी असमर्थ हैं तो फिर बेचारी इस कलम में तो ताकत ही क्या है ? ऐसे महान् पवित्र तीर्थंकर भगवन्तों के चरित्र का गान करने से जीवन सफल बन जाता है । पूज्य उपाध्यायजी म. यही कहते हैं कि हे प्रात्मन् ! उनके चरित्रों का पुनःपुनः पठन कर अपनी रसना को पवित्र करो और 'शान्त सुधारस' का पुनःपुनः पान कर दीर्घकाल तक आनन्द प्राप्त करो। शान्त सुधारस विवेचन-२७२
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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