SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ होता है। इसी प्रकार दुर्जन व्यक्ति को धर्म का उपदेश देना, उसके कोपादि के लिए ही होता है। बचपन में एक कथा पढ़ी थी-एक बार भयंकर सर्दी में पेड़ पर एक बन्दर काँप रहा था। उसे इस प्रकार काँपते हुए देखकर एक 'सुगरी' नामक पक्षी ने कहा-"तू इस प्रकार क्यों काँप रहा है ? अपने निवास के लिए तुमने घोंसला क्यों नहीं बनाया ? अभी भी तू सर्दी-गर्मी से रक्षण चाहता है तो अपने रहने के लिए घोंसला बना ले।" यह सुनते ही बन्दर गुस्से वाला हो गया। 'अरे! यह एक छोटा सा पक्षी, मुझे उपदेश दे रहा है।' ऐसा सोचकर उसने उस पक्षी के घोंसले को ही बिखेरदिया। इस प्रकार 'सुगरी' पक्षी की हित-सलाह उसी के विनाश के लिए कारण बन गई। जिस प्रकार कच्चे घड़े में भरा गया पानी, घड़े का नाश करता है, उसी प्रकार अपात्र-अयोग्य व्यक्ति को दिया गया उपदेश उसका भी विनाश करता है। - इसी कारण तीर्थंकर परमात्मा भी मुक्तिगामी भव्यात्माओं को सम्बोधित करके ही धर्म का उपदेश करते हैं, क्योंकि अभव्य और दुर्भव्य आत्माओं को उपदेश देना अनर्थ के लिए ही होता है। प्रस्तुत ग्रन्थकार महर्षि ने भी भव्यात्मात्रों के लिए ही इस ग्रन्थ की रचना की है, अतः वे सज्जन पुरुषों को सलाह देते हुए कहते हैं कि हे सज्जन पुरुषो ! हृदय में समता भाव को धारण कर इन दुष्ट प्रास्रवों की संगति का त्याग कर दो। ये प्रास्रव शान्त सुधारस विवेचन-२२१
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy