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________________ परमेष्ठि-शरणागति के बाद आत्मा निर्भय बन जाती है । परमेष्ठि-शरणागति के साथ-साथ तू शान्तसुधारस का अमीपान कर। इस शान्तसुधारस (अमृत रस) के तीन गुण हैं-(१) इससे समस्त व्याधियों का उपशमन हो जाता है। रोग के उपशमन से प्रात्मा शान्त बनती है और आरोग्य का अनुभव करती है। (२) यह अमृतरस वमन को दूर करने वाला है। इन्द्रियों के विकार वमनस्वरूप हैं, शान्त अमृतरस के पान से इन्द्रियों के विकार दूर हो जाते हैं । (३) यह शांतरस पीडारहित है। इसके पान में किसी प्रकार की तकलीफ नहीं रहती है। इस सुधारस के पान के बाद आत्मा अमर बन जाती है, विनाश के भय से वह सर्वथा मुक्त बन जाती है। यह शान्तसुधारस तो अमृतरस का पान है । भोजन करने पर क्षुधा की तृप्ति होती है। पानी पीने पर तृषा शान्त होती है, औषधि का सेवन करने पर रोग नष्ट होता है, इसी प्रकार जो आत्मा इस शान्तसुधारस का पान करती है, वह अमृतस्वरूप बन जाती है। जन्म-मरण के बन्धनों से मुक्त बनकर परम पद प्राप्त कर लेती है। परमपद की प्राप्ति के बाद प्रात्मा अमर बन जाती है, फिर उसे न जन्म की पीड़ा रहती है और न ही मरण की। आत्मा शाश्वतकाल तक परमानन्द का अनुभव करती है। शान्त सुधारस विवेचन-१७६
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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