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________________ की है। संस्कृत-भाषा के बोध के लिए यह ग्रन्थ अत्यन्त ही उपयोगी है। यह टीका ३४००० श्लोक-प्रमाण है। (४) नयकणिका-दीवबन्दर में २३ गाथानों के रूप में संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित इस ग्रन्थ की रचना हुई है। इसमें नयों के स्वरूप को अच्छे ढंग से समझाया गया है । (५) षट्त्रिंशत् जल्प संग्रह-उत्तराध्ययन ग्रन्थ के टीकाकार श्री भावविजयजी म. ने सं. १६६६ में षट्त्रिंशत् नामक ग्रन्थ संस्कृत पद्य में बनाया था, जिसमें तत्कालीन परिस्थिति का वर्णन किया गया था। इस ग्रन्थ को संक्षिप्त संस्कृत गद्य में रचा गया है। (६) अर्हन्नमस्कार-स्तोत्र-यह संस्कृत भाषा का स्तोत्र है और अभी तक अप्रकाशित है। (७) जिनसहस्रनाम स्तोत्र-वि. सं. १७३१ में गंधार में १४९ उपजाति छंदों में इस ग्रन्थ की रचना की गई है। इस स्तोत्र में एक हजार बार जिनेश्वर-भगवन्त को नमस्कार किया गया है । (5) इन्दुदूत काव्य-उपाध्याय श्रीमद् विनय विजयजी म. ने जोधपुर से अपने आचार्य विजयप्रभसूरिजी के नाम जो पत्र लिखा था, वही पत्र इन्दुदूत काव्य है। भादों सुद १५ के दिन चन्द्रमा को देखकर उसे दूत बनाकर अपने प्राचार्यश्री को विज्ञप्ति भेजी है। सम्पूर्ण लेख संस्कृत भाषा में मन्दाक्रांता छंद में है। इसमें कुल १३१ श्लोक हैं । गुजराती भाषा की कृतियाँ : (१) सूर्यपुर चैत्यपरिपाटी–वि. सं. १६८९ में सूरत शहर के मन्दिरों को जो चैत्यपरिपाटी की थी, उन सब मन्दिरों का इसमें सुन्दर वर्णन है। ( १६ )
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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