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________________ हो रहे हैं, उन सबका मूल सांसारिक वस्तुओं पर रही हुई ममत्व-स्वामित्व की भावना ही है। इस ममत्व के कारण ही जीवात्मा इस संसार में चारों ओर भाग-दौड़ करता है और इष्ट विषय की प्राप्ति के लिए नाना प्रकार के पापकर्म-दुष्कर्म आदि भी करता है। वह सांसारिक व्यक्तियों व वस्तुओं में 'अपनेपन-पराएपन' की कल्पना कर लेता है। इस ममत्व की बुद्धि से जीवात्मा विशाल क्षेत्र का मालिक बनने का प्रयत्न करता है। धन के ढेर खड़े कर देता है। परन्तु जब प्रायुष्य समाप्त हो जाता है, तब सब यहीं का यहीं रह जाता है और जीवात्मा को अकेला ही जाना पड़ता है। जरा, कवि की भावपूर्ण पंक्तियों का गान कर लें तू चेत मुसाफिर ! चेत जरा , क्यों मानत मेरा - मेरा है। इस जग में नहीं कोई तेरा है। जो है सो सभी अनेरा है। ....ए काया .. नश्वर तेरी है, एक दिन वो राख की ढेरी है , जहाँ मोह का खूब अंधेरा है, क्यों मानत मेरा - मेरा है ॥१॥ जरा, गहराई से सोचेंगे तो पता चलेगा कि इस संसार में अपना कोई नहीं है। छह खण्ड का अधिपति-चक्रवर्ती भी मृत्यु के समय एक फूटी कौड़ी भी साथ में नहीं ले जा सकता है। सिकन्दर ने अपने जीवन में धन के ढेर लगा दिए थे, किन्तु मृत्यु समय वह अपने साथ क्या ले गया ? viw tw ma duc शान्त सुधारस विवेचन-१३४
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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