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________________ की शान्ति के लिए चन्दन घिसने लगीं। सैकड़ों रानियाँ निरन्तर चन्दन घिस रही थीं, इस प्रकार चन्दन घिसते समय राजरानियों के हाथों में रहे कंकण परस्पर टकराकर आवाज करने लगे। कंकरण के टकराने से उत्पन्न ध्वनि को सहन करने में नमिराजा अशक्त हो चुके थे, अतः वे चिल्ला उठे-"अहो ! आज मेरे सब दुश्मन बन गए। इस प्रकार कर्णभेदी आवाज क्यों हो रही है ?" महाराजा के भाव को जानते ही सभी महारानियों ने अपने हाथों में से एक कंकरण को छोड़, शेष कंकरण उतार दिए और थोड़ी ही देर बाद कंकरण की मर्मभेदी ध्वनि शान्त हो गई। फिर भी राजरानियाँ जोरों से चंदन घिसे जा रही थीं। तभी महाराजा ने कहा--"मंत्रीश्वर ! क्या चन्दन का घिसना बन्द हो गया है, वही तो मेरा जीवन है देखो, अभी चन्दन घिसने की आवाज तो नहीं आ रही है।' मंत्री ने कहा--"राजन् ! चन्दन के विलेपन के प्याले तैयार हैं। चन्दन का घिसना बंद नहीं हुआ है, किन्तु महारानियों ने अपने हाथों में से एक कंकरण को छोड़ शेष कंकण उतार दिये हैं, अतः उनकी आवाज बन्द हो गई है। जहाँ दो कंकण टकराते हैं, वहाँ अावाज होती है और जहाँ एक ही कंकरण होता है, वहाँ आवाज का प्रश्न ही नहीं है।' मंत्रीश्वर की यह बात सुनते ही नमि महाराजा को आत्मचिन्तन की नई दिशा मिल गई। वे सोचने लगे--"एक में शान्ति, अनेक में अशान्ति ।" शान्त सुधारस विवेचन-१३०
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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