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________________ संन्यासी ने कहा-"बस ! मेरा यह छोटा सा पात्र सोना मोहर से भर दो।" सुनते ही राजा ने खजांची को आदेश दिया। तत्काल खजांची एक थाल भर कर सोना मोहर ले आया और उसने वे मोहरें संन्यासी के पात्र में उंडेल दी, परन्तु आश्चर्य ! संन्यासी का पात्र खाली ही था। मुश्किल से उस पात्र का पैंदा ही ढक पाया था। राजा की सूचना से पुनः खजांची सोना मोहर ले आया। पुनः उस पात्र में उडेल दी...फिर आश्चर्य....! पात्र खाली ही था। इस तरह बारम्बार की इस प्रक्रिया के बावजूद भी जब उस संन्यासी का पात्र भरा नहीं गया, तब महाराजा ने आश्चर्यचकित होकर संन्यासी को कहा- "बाबाजी ! आज तक मैंने सभी याचकों की इच्छाएँ पूर्ण की हैं। परन्तु माफ करें, मैं आपके इस मनोरथ को पूर्ण नहीं कर सकता। क्या आप कृपया यह बतायेंगे कि आपका यह पात्र किस वस्तु से बना हुआ है ? संन्यासी ने कहा- "राजन् ! यह तो सबसे अजीब पात्र है। यह न तो सोने का बना हुआ है."न चांदी का। यह एक लोभी इन्सान की खोपड़ी से बना खप्पर है, इसमें कितना ही डालो, सबको अपने में समा लेगा। यह पात्र कभी भरता ही नहीं है।" सुनते ही महाराजा चकित हो गए। यह हालत है मानव के लोभ की। कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्यजी ने 'योगशास्त्र' में कहा है शान्त सुधारस विवेचन-८७
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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