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________________ ६६ श्री संवेग रंगशाला बैठी । फिर मध्य रात्री के समय नटों के देने योग्य दान देकर निन्द्रा से घिरी हुई आँखों वाली मैं इसके साथ सो गई, इससे अधिक मैं कुछ भी नहीं जानती, केवल आवाज सुनकर "भाई चिरकाल जीओ" ऐसा बोलती मैं जागृत हुई । ऐसा सुनकर कुछ प्रशान्त शोक वाला बार-बार 'इन नियमों का यह फल है' ऐसा चिन्तन करते वह समय व्यतीत करने लगा । परिवार बिना का वह गांव, नगर आदि लूटने में असमर्थ हो जाने से, तथा धन बिना परिजन को भूख से पीड़ित देखकर संताप वाला बना अब 'सेंध खोदे बिना मुझे दूसरे जीने के उपाय नहीं हैं' ऐसा निश्चय करके वह अकेला ही उज्जैन नगर में गया, वहाँ धनिक लोगों के मकान में आने-जाने की खिड़की के दरवाजे को देखकर उसने चोरी करने के लिए एक बड़ घर में प्रवेश किया, वह मकान केवल बाहर की आकृति से सुन्दर दिखता था परन्तु उस घर में केवल स्त्रियों में परस्पर झगड़ा करते देखा । इससे उसने विचार किया कि यह झगड़ा कर रही हैं, अतः निश्चय ही इस घर में बहुत धन नहीं है क्योंकि लोक में भी यह प्रसिद्ध है कि 'अधजल गगरी छतकत जाए'। धन अल्प होने पर चोरी करने से मुझ क्या सम्पत्ति मिलगी ? बहुत बड़ बिन्दु से कोई समुद्र भर जाता है ? ऐसा विचार कर उसी समय उस घर को छोड़कर, महान आशय वाला वह सारे नगर में प्रसिद्ध देवदत्ता वेश्या के घर पहुँचा और सेंध गिराने में श्रेष्ठ अभ्यासी वह सेंध खादकर वहाँ रत्नों से रमणाय दिवालवाला और हमेशा जगमगाहट दीपक वाले वासगृह में प्रवेश किया, वहाँ उसने उस Safar को अत्यन्त कोढ़ रोग से निर्बल और भयंकर शरीर वाले एक पुरुष के साथ में शय्या के अन्दर सुखपूर्वक सोई हुई देखा । अरे रे ! देखो ऐसी महान धन वाली भी यह अनार्य वेश्या धन के लिए इस तरह कोढ़ी का भी आदर कर रही है । अथवा तो मैं अनार्य हूँ जो कि इसके पास से भी धन लने की इच्छा रखता | अतः यह धन योग्य नहीं है, बड़े धनाढ्य के घर जाऊँ ! ऐसा विचार कर समग्र व्यापारियों में मुख्य सेठ के घर सेंध खोदकर धीरे से मकान गया, वहाँ दो हाथ से कलम और बही पकड़ कर पुत्र के साथ क्षण क्षण का भी हिसाब को पूछते सेठ को देखा । और वहाँ हिसाब में एक पैसा कम था . वह किसी तरह नहीं मिलने से रोष से भरे हुये सेठ ने पुत्र से कहा - अरे कुल का क्षय करने वाले काल ! मेरी दृष्टि से दूर हट जा, एक क्षण भी घर में नहीं रहना । इतना बड़ा धन का नाश मैं अपने बाप का भी सहन नहीं करूँगा । ऐसा बोलते और प्रचन्ड क्रोध से लाल आँखों के क्षोभ वाले उसे देख -
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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