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________________ पूर्दद श्री संवेगरंगशाला दूसरा दृष्टान्त गाँव को लूटने वाले छह चोर थे । उनमें एक बोला कि - मनुष्य या पशु जो कोई देखो उन सबको मारो। दूसरे ने कहा- पशु को क्यों मारें ? केवल सर्व मनुष्यों को ही मारें । तीसरे ने कहा कि- स्त्री को छोड़कर केवल पुरुष को ही मारें । चौथे ने कहा - केवल शस्त्रधारी को ही मारना चाहिए । पाँचवें ने कहा- जो शस्त्रधारी हमारे ऊपर प्रहार करे उसे ही मारना चाहिए । छठा बोला कि - एक तो हम निर्दय बन कर उसका धन लूट रहे हैं और दूसरे मनुष्य को मार रहे हैं अहो ! यह कैसा महापाप है ? इससे ऐसा मत करो, केवल धन को ही लेना चाहिए। क्योंकि दूसरे जन्म में तुमको भी ऐसा होगा । इसका उपनय इस प्रकार है : - जो गाँव को मारने को कहता है वह कृष्ण लेश्या वाला है । दूसरा नील लेश्या वाला, तीसरा कपोत लेश्या वाला, चौथा तेजो लेश्या वाला, पाँचवाँ पद्म लेश्या वाला और छठा अन्तिम शुक्ल लेश्या में रहा है । इसलिए हे क्षपक मुनि ! अति विशुद्ध क्रिया वाला विशिष्ट संवेग प्राप्त करने वाला तू कृष्ण नील और कपोत अप्रशस्त लेश्या को छोड़ दो और अनुत्तर श्रेष्ठतर श्रेष्ठतम संवेग को प्राप्त कर तू क्रमशः तेजोलेश्या, पद्म और शुक्ल इन तीन सुप्रशस्त लेश्याओं को प्राप्त कर । जीव को लेश्या की शुद्धि परिणाम की शुद्धि होती है और परिणाम की विशुद्धि मन्द कषाय वालों को होती है । कषायों की भन्दता बाह्य वस्तुओं के राग को छोड़ने वाले को होता है अत: शरीर आदि में राग बिना का जीव लेश्या शुद्धि को प्राप्त करता है । जैसे छिलके वाला धान की शुद्ध नहीं होती है वैसे सरागी जीव को लेश्या शुद्धि नहीं होती है । यदि जीव शुद्ध लेश्याओं के विशुद्ध स्थानों में रहकर काल करे तो वह विशिष्ट आराधना को प्राप्त करता है । इसलिए लेश्या शुद्धि के लिए अवश्यमेव प्रयत्न करना चाहिए। क्योंकि जीव जिस लेश्या में मरता है। उसी लेश्या में उत्पन्न होता है । और लेश्या रहित परिणाम को प्राप्त करते ज्ञान दर्शन से सम्पूर्ण आत्मा सर्व क्लेशों को नाश करके अक्षय सुख समृद्धि वाली सिद्धि को प्राप्त करता है । इस प्रकार आगम समुद्र की बाढ़ समान और सद्गति में जाने का सरल मार्ग समान चार मूल द्वार वाली संवेगरंगशाला नाम की आराधना के नौ अन्तर द्वार वाला चौथा समाधि द्वार में लेश्या नाम का सातवाँ अन्तर द्वार कहा है । लेश्या विशुद्ध ऊपर चढ़कर क्षपक साधु जो आराधना को प्राप्त करते हैं उसे अब फल द्वार में कहते हैं । 1 आठवाँ फल प्राप्ति द्वार : - आराधना तीन प्रकार की होती हैंउत्कृष्ठय, मध्यम और जघन्य । इसकी स्पष्ट तारतम्य लेश्या द्वारा कहा है ।
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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