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________________ ५६० श्री संवेगरंगशाला अव्यवस्था होने से राजा का राजत्व खत्म हो जाएगा। इस प्रकार हम लोग जानते हुये भी अपने हाथ से, राजा से इस कन्या का विवाह कर समस्त भावी में होने वाले दोषों का कारण हम लोग क्यों बनें ? इसलिए भी दोष बताकर राजा को इससे बचा लें । सबों ने यह बात स्वीकार की और राजा के पास गये। फिर पृथ्वी तल को स्पर्श करते मस्तक द्वारा सर्व आदरपूर्वक राजा को नमस्कार करके, मस्तक को नमाकर, हाथ जोड़कर वे कहने लगे कि हे देव ! रूपादि सर्व गुणों से कन्या सुशोभित है, केवल वह पति का वध करने वाली एक बड़ी दुष्ट लक्षण वाली है। इसलिए राजा ने उसे छोड़ दी। फिर उसके पिता ने उस राजा के सेनापति को उस कन्या को दी और उससे विवाह किया। फिर उसके रूप से, यौवन से और सौभाग्य से आकर्षित हृदय वाला सेनापति अपनी पत्नी में ही अत्यन्त वश हुआ। कुछ समय व्यतीत होते एक दिन राजा सुभट के समूह से घिरा हुआ हाथी पर बैठकर, सुन्दर चमर के समूह से ढुलाते और ऊपर श्वेत छत्र वाले उस सेनापति के साथ घूमने चला, उस समय उस सेनापति की पत्नी ने विचार किया कि-'मैं अपलक्षणी हूँ।' इस प्रकार मानकर राजा ने मुझे क्यों छोड़ दी ? अतः मैं वापिस आते उसका दर्शन करूं। ऐसा विचार कर निर्मल अति मूल्यवान रेशमी वस्त्रों को धारण करके राजा के दर्शन के लिए मकान पर चढ़कर खड़ी रही। राजा भी बाहर श्रेष्ठ घोड़े, हाथी और रथ से क्रीड़ा करके अपने महल में जाने की इच्छा से वापिस आया। और आते हुए राजा की विकाशी कमल पत्र के समान दीर्घ दृष्टि किसी तरह खड़ी हुई उसके ऊपर गिरी। इससे उसमें एक मन वाला बना राजा क्या यह रति है ? क्या रम्भा है ? अथवा क्या पाताल कन्या है ? या क्या तेजस्वी लक्ष्मी है ? इस प्रकार चिन्तन करते एक क्षण खड़ा रहकर जैसे दुष्ट अश्व की लगाम से काबू करता है वैसे चक्षु को लज्जा रूपी लगाम से अच्छी तरह घुमाकर महा मुश्किल से अपने महल में पहुँचा । और सभी मन्त्री सामंत तथा सुभट वर्ग को अपनेअपने स्थान पर भेजकर, अन्य सर्व प्रवृत्ति छोड़कर मुसीबत से शय्या पर बैठा। फिर उसके अंग और उपांग की सुन्दरता देखने से मन से व्याकुलित बने उस राजा का अंग काम से अतीव पीड़ित होने लगा। इससे कमल समान नेत्रवाली उसे ही सर्वत्र देखते तन्मय चित्त वाला राजा चित्र के समान स्थिर हो गया। और उसी समय पर सेनापति आया, तब राजा ने पूछा किउस समय तेरे घर ऊपर कौन देवी थी? उसने कहा कि-देव ! यह वही थी कि जिस सार्थवाह की कन्या को आप ने छोड़ दी थी, अब वह मेरी पत्नी
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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