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________________ ५१२ श्री संवेगरंगशाला समान है, महान् श्रेष्ठ महिमा वाले हैं, परम पद के साधक रूप हैं, परम पुरुष, परमात्मा और परमेश्वर हैं तथा परम मंगलभूत हैं, सद्भूत उन-उन भावों के यथार्थ उपदेशक हैं और तीन जगत के भूषण रूप श्री अरिहंत परमात्मा का हे सुन्दर मुनि ! तू शरण स्वीकार कर । और जो भव्य जीव रूपी कमलों के विकाश के लिए चन्द्रमा समान हैं, तीन लोक को प्रकाश करने में सूर्य समान हैं, संसार में भटकते दुःखी जीव समूह का विश्राम स्थान हैं, श्रेष्ठ चौतीस अतिशयों से समृद्धशाली हैं, अनन्त बल वाले, अनन्त वीर्य वाले और सत्त्व से युक्त होते हैं, भयंकर संसार समुद्र में डूबते जीव समूह को पार उतारने में जहाज समान हैं और विष्णु, महेश्वर, ब्रह्मा तथा इन्द्र को भी दुर्जय कामरूपी महाशत्र के अहंकार को उतारने वाले श्री अरिहंत भगवन्तों का, हे सुन्दर मुनि ! तू शरण स्वीकार कर। जो तीनों लोक की लक्ष्मी के तिलक समान हैं, मिथ्यात्व रूप अन्धकार के विनाशक सूर्य हैं, तीनों लोक रूपी मोह मल्ल को जीतने में महामल्ल के समान हैं, महासत्त्व वाले हैं, तीन लोक से जिसके चरण कमल की पूजा होती है, समस्त तीन लोक में विस्तृत प्रताप वाले हैं, विस्तृत प्रताप से प्रचन्ड पांखड़ियों का प्रभाव का नाश करने वाले हैं, विस्तृत कीर्तिरूपी कमलिनी के विस्तार से समस्त भवन रूपी सरोवर के व्यापक हैं, तीन लोक रूपी सरोवर में राजहंस तुल्य हैं, धर्म की धरा को धारण करने में श्रेष्ठ वृषभ के समान हैं जिनकी सर्व अवस्थाएं प्रशंसनीय हैं, अप्रतिहत-अजेय शासन वाले हैं, अतुल्य तेज वाले हैं जिनका विशिष्ट दर्शन सम्पूर्ण पुण्य समूह से युक्त है, जो श्रीमान् भगवान् तथा करुणा वाले हैं और प्रकृष्ट जय वाले सर्व श्री अरिहंतों का हे सुन्दर मुनि । तू शरण स्वीकार कर।। श्री सिद्धों का स्वरूप और शरण स्वीकार :-इस मनष्य जन्म में चारित्र को पालकर पाप के आश्रव को रोककर पण्डित मरण से मरकर संसार परिभ्रमण को दूर करके कृत कृत्यपने से जो सिद्ध है, निर्मल केवल ज्ञान से बुद्ध है, संसार के मिथ्यात्वादि कारणों से मुक्त है, सुखरूपी लक्ष्मी में सर्वथा तल्लीन है, जिन्होंने सकल दुःखों का अन्त किया है, सम्यग्ज्ञानादि गुणों से अनन्त भावों के ज्ञाता हैं, अनन्त-वीर्य लक्ष्मी वाले हैं, अनन्त सुख समूह से संक्रान्त-सूखी बने हैं, सर्व संग से रहित निर्मक्त हैं और जो स्व-पर कर्म बन्धन में निमित्त नहीं हुए हैं ऐसे श्री सिद्ध परमात्माओं का हे सुन्दर मुनि ! तू शरण स्वीकार कर । और जिसके कर्मों का आवरण नष्ट हो गये हैं, समस्त जन्म, जरा और मरण से पार हो गये हैं, तीन लोक के मस्तक के मुकुट रूप हैं, जगत के सर्व जीवों के श्रेष्ठ शरण भूत हैं, जो क्षायिक गुणात्मक हैं, समस्त तीन
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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