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________________ ४७६ श्री संवेगरंगशाला वर्ण के रत्नों के आभूषण की किरणों से सर्व दिशाओं को चित्रित करते, सम्पूर्ण गंडस्थल पर लहराते कुण्डलों की कान्ति से देदीप्यमान, तथा मनोहर कंदोरे वाली देवांगनाओं के समूह से मनोहर तथा समग्र ग्रहों के समूह को एक साथ गिराने में, भूतल को घुमाने में, और सारे कुल पर्वतों के समूह को लीलामात्र से चूरण करने में, और मान सरोवर आदि बड़े-बड़े सरोवर, नदियों, द्रह और समुद्रों के जल को प्रबल पवन के समान एक काल में ही सम्पूर्ण शोषण करने में शक्तिमान, तीनों लोकों को पूर्ण रूप में भर देने के लिये अत्यधिक रूपों को शीघ्र बनाने वाले, तथा शीघ्र केवल परमाणु जैसा छोटा रूप बनाने में समर्थ, और एक हाथ की पाँच अंगुलियों से प्रत्येक के अग्र भाग में एक-एक को एक साथ पाँच मेरू पर्वत को उठाने में समर्थ, अधिक क्या कहें? एक क्षण में ही उपस्थित वस्तु को भी नाश और नाश वस्तु को भी मौजद दिखाने में और करने में भी समर्थ, तथा नमस्कार करते देव समूह के मस्तक मणि की किरणों की श्रेणि से स्पर्शित चरण वाले, भृकुटी के इशारे मात्र के आदेश करते ही प्रसन्न होकर संभ्रमपूर्वक खड़े होते आभियोगिक देवों के परिवार वाला, इच्छा के साथ में ही अनुकूल विषयों के समूह को सहसा प्राप्त करने वाले प्रीति रस से युक्त सतत् आनन्द करने की एक व्यसनी निर्मल अवधि ज्ञान से और अनिमेष दृष्टि से दृश्यों को देखने वाला तथा समयकाल में उदय को प्राप्त करते सकल शुभकर्म प्रकृतियों वाला इन्द्र महाराज भी देवलोक में जो ऋद्धि से युक्त मनोहर विमानों की श्रेणियों का चिरकाल अस्खलित विस्तार वाला स्वामित्व भोगता है वह भी सद्भावपूर्वक श्री पंच नमस्कार मन्त्र की सम्यक् आराधना का अल्प प्रभाव जानना। ऊर्ध्व, अधो और तिर्छालोक रूपी रंग मंडप में द्रव्य, क्षेत्र, काल या भाव के आश्रित आश्चर्यकारक जो कुछ भी विशिष्ट अतिशय किसी तरह किसी भी जीव में दिखता है अथवा सुना जाता है वह सब भी श्री नमस्कार मन्त्र स्मरण के महिमा से प्रगट होता है, ऐसा जानो। दुःख से पार उतारने वाले जल में, दुःख से पार कर सके ऐसी अटवी में, दुःख से पार उतरने वाला विकट पर्वत में अथवा भयंकर शमशान में अथवा अन्य भी दुःखद समय पर जीव को नमस्कार रक्षक और शरण है । वश करना, स्थान भ्रष्ट करना, तथा स्तम्भित करना, नगर का क्षोभ करवाना या घेराव करना इत्यादि में तथा विविध प्रयोग करना वह यह नमस्कार ही समर्थ है । अन्य मन्त्रों से प्रारम्भ किया हुआ जो कार्य, वह भी उसको ही सम्यग् प्राप्ति होती है। अथवा अपने स्मरणपूर्वक कार्य प्रारम्भ किये हुए की सिद्धि करने वाला, यह श्री पंच नमस्कार का स्मरण
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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