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________________ श्री संबेगरंगशाला प्रकर्ष से संशयों को दूर कर सर्व पदार्थों का निश्चय करने वाला तथा नयमित महाअर्थ को जानने वाला, प्रशस्त्र शास्त्रों का चिन्तन में उद्यमशील, संधि, विग्रह, यान, आसन आदि छह गुण में स्थिर चित्त वाले और अपने स्वामी के कार्य सिद्ध करने में जीवन को सफल मानने वाले, वफादार स्वामी भक्त एवम् गाढ़ प्रेम होने के कारण परस्पर अलग नहीं होने वाले, श्रेष्ठ कवियों के समान अपूर्व अर्थ का चिन्तन करने में अटूट इच्छा वाले और सर्वत्र प्रसिद्ध यश वाले, धनंजय, जय, सुबन्धु आदि मन्त्री थे, उसके ऊपर राज्य की जिम्मेदारी रखकर राजा अपनी इच्छानुसार क्रीड़ा करता था। वह किसी समय उछलते श्रेष्ठ झांझर को कोमल झंकार वाला तथा नाच करते, उछलते, बड़े देदीप्यमान हार से सुशोभित नृत्यकी का गला, निर्मल हार और लम्बा कंदोरे के टूटते डोरी वाला विविध प्रकार का नृत्य का नाटक देखता था, किसी समय हाथ की उंगलियों से अंकुश पकड़कर अत्यन्त रोषयुक्त दुष्ट मदोन्मत्त हाथी के स्कन्ध ऊपर बैठकर लम्बे पथ वाले वन में लीलापूर्वक क्रीड़ा करके मनुष्यों के आग्रह को ना करने में कायर वह राजा अपने महल में वापिस आता था। किसी दिन मद का पान करते बहुत भ्रमरों से भूषित, अर्थात् मद झरते हाथियों के समूह को, तो किसी दिन अति वेग वाले घोड़े को दौड़ाते नचाते देखते थे, किसी समय श्रेष्ठ कोमल काष्ठ से बने हये सुन्दर रथ के समूह को तो किसी दिन उत्कृष्ट राजा के भाव को जानने वाले महासुमटों को देखते थे। इस तरह राज्य धर्म का देखभाल करते हुये भी वह राजा हमेशा आत्मधर्म के निमित्त पुण्य, पाप, बंध, मोक्ष आदि तत्त्वों को समझाने वाली युक्ति वाला, अनेक विभागों को बताने वाला, संसार के स्वरूपों को सूचित करने वाला और सभी दोषों का नाश करने वाला आगम शास्त्र के अर्थ में दत्तचित्त होकर नये-नये भावों को आश्चर्यपूर्वक सुनता था। इस तरह पूर्व जन्मोपजित महान पुण्य के समूह से सर्व इच्छाओं से पूर्ण हुआ उस राजा के दिन विविध क्रीडा से व्यतीत होते थे। वह राजा किसी दिन सभा में बैठा था उसके दाहिने और बायें दोनों ओर नवयुवतियों द्वारा उज्जवल चामर ढोले जा रहे थे, दूर देश से राजाओं का समूह आकर चरण कमल में नमस्कार कर रहे थे, और स्वयं अन्यान्य सेवकों के ऊपर मधुर दृष्टि को फेंक रहा था, उस समय पर काँपते शरीर वाला, सिर पर सफेद बाल वाला और इससे मानो वृद्धावस्था का गुप्तचर हो ऐसा कंचुकी शीघ्र राजा के पास आकर बोला कि :-आदरपूर्वक आई हुई स्त्रियों के पुखरूप कमलों को विकसित (प्रसन्न) करने में चन्द्र तुल्य सुखरूपी लताओं के मूल स्वरूप क्रीड़ा
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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