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________________ २७६ श्री संवेगरंगशाला लिये चौमासे में कोशा के घर गये । कोशा उत्तम वेश्या ने विकारी हास्य, विकारी वचन, विकारी चाल और वक्र कटाक्ष आदि द्वारा लीला मात्र में उसे विकारी कर दिया, इससे शीघ्रमेव उसे अपने वशीभूत कर दिया। फिर उसके शील के रक्षण के लिये उसे 'नये साधु को लाख सोना मोहर के मूल्य वाला रत्न कम्बल का दान नेपाल देश का राजा देता है उसके पास रत्न कम्बल लेने के लिये भेजा। इस तरह तत्त्व से विचार करते संयम रूपी प्राण का विनाश करने में एकबद्ध लक्ष्य वाली एवं दुःख को देने वाली स्त्री में तथा प्राण लेने वाले, लक्ष्य वाले, दुःख देने वाले शत्रु में कोई भी अन्तर नहीं है। तथा मुनि शृङ्गार रूपी तरंग वाली, विलास रूपी ज्वर वाली, यौवन रूपी जल वाली और हास्य रूपी फणा वाली, स्त्री रूपी नदी में नहीं बहते हैं। परन्तु धीर पुरुष विषय रूपी जल वाले, मोह रूपी कीचड़ वाले स्त्रियों के नेत्र विकार तथा विकारी अंग चेष्टा आदि जलचरों से व्याप्त काम के मद रूपी मगरमच्छ वाला और यौवन रूपी महासमुद्र को पार प्राप्त करते हैं। जो स्त्रियाँ पुरुष को बन्धन के लिये पाश समान अथवा ठगने के लिये पाश सदृश, छेदन करने के लिए तलवार समान, दु:खी करने के लिए शल्य तुल्य, मूढ़ता करने में इन्द्रजाल सदृश, हृदय को चीरने में कैंची के समान, भेदन करने में शूली समान, दिखने में कीचड़ समान और मरने के लिये मारने योग्य है अथवा श्लेष्म में चिपटी हुई तुच्छ मक्खी को छुटना जैसे दुष्कर है वैसे तुच्छ मात्र पुरुष नाम धारी को स्त्री के संसर्ग से आत्मा को छोड़ना निश्चय ही अति दुष्कर है। जो स्त्री वर्ग में सर्वत्र विश्वास नहीं करता है और सदा अप्रमत्त रहता है, वह ब्रह्मचर्य को पार कर सकता है। इससे विपरीत प्रकृति वाला पार को नहीं प्राप्त कर सकता है। स्त्रियों में जो दोष होते हैं वह नीच पुरुषों में भी होते हैं अथवा अधिक बल-शक्ति वाले पुरुषों में स्त्रियों से अधिकतर दोष होते हैं। इसलिए ब्रह्मचर्य का रक्षण करने वाले पुरुषों को जैसे स्त्रियाँ निन्दा का पात्र हैं, वैसे ब्रह्मचर्य का रक्षण करने वाली स्त्रियों को पुरुष भी निन्दा का पात्र है । और इस पृथ्वी तल में गुण से शोभायमान अति विस्तृत यश वाली तथा तीर्थंकर चक्रवर्ती, बलदेव गणधर आदि सत्त्पुरुषों को जन्म देने वाली, देवों की सहायता प्राप्त करने वाली शीलवती, मनुष्य लोक की देवियाँ समान चरम शरीरी और पूज्यनीय स्त्रियाँ भी हुई हैं, ऐसा सुना जाता है। कि जो पुण्यशाली पानी के प्रवाह में नहीं बहतीं, भयंकर जलती हुई अग्नि से जो नहीं जलती हैं और सिंह तथा हिंसक प्राणी भी उनको उपद्रव नहीं कर सके हैं । इसलिये सर्वथा ऐसा कहना योग्य नहीं है कि-एकान्त से स्त्रियाँ ही
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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