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________________ श्री संवेगरंगशाला गुणरूपी राजा की राजधानी के समान श्री सर्वज्ञ परमात्म की महावाणी को मैं नमस्कार करता हूँ कि जो वाणी संसाररूपी भयंकर कुए में गिरते हुए प्राणियों के उद्धार के लिए निष्पाप रस्सी के समान है। वह उत्तम प्रवचन (वाणी) विजयी है कि उन्मार्ग में जाते हुए बैल तीक्ष्ण परोण को देखकर जैसे वह सन्मार्ग में चलता है वैसे प्राणी प्रेरक प्रवचन को प्राप्त कर संसार मार्ग को छोड़कर मोक्ष मार्ग स्वीकार करता है। जो चिन्ता (ज्ञान) रूपी रहट को तैयार कर धर्म तथा शुक्ल दो शुभध्यान रूपी बैलों की जोड़ी द्वारा आराधना रूपी घड़ों की माला से आराधक जीव रूपी पानी को जो संसार रूपी कुएँ में से खींचकर उच्चे स्थान (स्वर्ग या मोक्ष) में पहुँचाते हैं उन रहट तुल्य निर्यामक गुरु भगवंतों को तथा मुनिराज को सविशेष नमस्कार करता हूँ। सद्गति की प्राप्ति के लिए मूल आधारभूत इस (ग्रंथ में जो परिकर्म विधि आदि कही जायेगी) चार प्रकार की स्कंध वाली आराधना को पार उतरने वाले मुनियों को मैं वंदन करता हूँ और ऐसे गृहस्थों को अभिनन्दन (प्रशंसा) करता हूँ। वह आराधना भगवती जगत में हमेशा विजयी रहे कि जिसको दृढ़तापूर्वक लगे हुए भव्य प्राणि 'नाव में बैठकर समुद्र पार करता है वैसे भयंकर भव समुद्र को पार उतर सकते हैं। अतः संसार से पार उतरने के लिए आराधना नाव समान है। अब श्रुतदेवी की स्तुति करते हैं । हे श्रुतदेवी ! नित्य विजयी हो कि जिसके प्रभाव से मंद बुद्धि वाले भी कवि अपने इष्ट अर्थ को प्राप्त करने में समर्थ बन जाते हैं। अब अपने पूज्य गुरुदेव की स्तुति करते हैं : जिनके चरण कमल के प्रभाव से मैं सब लोगों में प्रशंसनीय सूरिपदवी को प्राप्त की है, वे देवों से अथवा पंडितों द्वारा पूज्यनीय मेरे गुरु भगवन्त को मैं वन्दन करता हूँ। इस तरह समस्त स्तुति समूह को इस स्तुति द्वारा जैसे सुभट हाथियों के समूह द्वारा शत्रुरूपी प्रतिपक्ष को चकनाचूर करता है वैसे विघ्नों रूपी प्रतिपक्ष को चकनाचूर करने वाला मैं स्वयं अल्पमति वाला होने पर महान् गुणों
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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