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________________ श्री संवेगरंगशाला १६९ तिल पापड़ी का भक्षण करे, वह उसी प्रकार वर्तन से करते मरता है और जल, तेल, चरबी, मज्जा आदि का स्वप्न में पान करने से अतिसार के रोग से मरता है । जिसके स्वप्न में बन्दर, गधा, ऊँट, बिलाव, बाघ, भेड़िया, सूअर के साथ तथा प्रेतों या सियारों के साथ गमन होता हो, वह भी जाने किमरने की इच्छा वाला जानना । तथा लाल पुष्प वाले, मूंडा हुआ, नग्न यदि पुरुष को स्वप्न में चण्डाल दक्षिण दिशा में ले जाए और स्वप्न में जिसके मस्तक पर बांस की लता आदि उत्पन्न होने का सम्भव हो, पक्षी घोंसला डाले, कौआ, गिद्ध आदि सिर पर चढ़े, बैठे तथा स्वयं मुंडन किया हुआ देखे, जिसको स्वप्न में ही प्रेत, अपने किसी सम्बन्धी को मरा हुआ, पिशाच, स्त्री या चण्डाल का संगम हो तथा बेत की लता, घास के या बांस के जंगल में या पत्थर वाली अटवी में अथवा कांटे वाले जंगल में, खाई में या शमशान में यदि शयन करे अथवा राख में या धूल में गिरे, पानी या कीचड़ में फंस जाए और शीघ्र वेग वाले जल प्रवाह द्वारा बह जाता है तो मृत्यु अथवा भयंकर बीमारी आती है। तथा स्वप्न में लाल पुष्प की माला को धारण करता, विलेपन करता है, वस्त्र भूषा पहनता तथा गीत गाता है, बाजे बजाता है या नृत्य क्रिया करे, स्वप्न में जिसके अंग का नाश अथवा वृद्धि होती है, गात्र का अभ्यंगन हो, तथा मंगल विवाह, हास्यादि क्रिया होती हो, यदि स्वप्न में मिठाई आदि भोजन को खाए, जिससे उल्टी या विरेचन हो, धन आदि या लोहा आदि कोई भी धातु की प्राप्ति हो, स्वप्न में शरीर के सर्व अंगों को लता के विस्तार से या वृक्ष की छाल से लपेटे, तथा जो स्वप्न में ही झगड़ा करे तथा जिसका बन्धन अथवा पराजय हो, देव मन्दिर, नक्षत्र, चक्षु प्रदीप दांत आदि गिरे अथवा नाश आदि हो, जूते का नाश हो और हाथ पैर की चमड़ी का पतन हो, स्वप्न में अति क्रोधित हुआ चचेरे लोगों से जिसका तिरस्कार हो अथवा सहसा अति हर्ष होता है अथवा जिसका विश्वास भंग हो, तथा स्वप्न में ही रसोईघर में, माता के पास, चिता में, लाल पुष्पों के वन में, अति तंग अन्धकार में जिसका प्रवेश होता है, स्वप्न में भगवा रंग वाला वस्त्र पहनकर लाल आँख वाला त्रिदण्डधारी या नग्न, काला मनुष्य का मुख का, क्षुद्र मनुष्य का दर्शन हो तथा जो स्वप्न में ही रात्री भोजन करता है तथा मन्दिर या पर्वत से गिरता है, जिस पुरुष को मगरमच्छ निगल जाए, अति काली छाया और वस्त्रों वाली, अति पीली आँखों वाली, वस्त्र रहित, विकृत आकार वाली, क्षीण उदर वाली, अति बड़े नख और रोमांचित वाली तथा हँसती स्त्री को
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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