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________________ श्री संवेगरंगशाला १६३ ही रात्री अथवा कल या परसों दिन निश्चय यह जाने का उत्सुक है। हम भी जल्दी भेजने की इच्छा करते हैं, इससे शीघ्र जायेगा इत्यादि । यह स्वरूप वाली उपश्रुति का दूसरा प्रकार का शब्द जानना। इसका अभिप्रायः यह है कि यदि जाने की बात सुनाई दे तो आयु का अन्त निकट है, और रहने की बात सुने तो मृत्यु अभी नजदीक नहीं है । इस तरह दोनों प्रकार के शब्द को सुनकर उसके अनुरूप निर्यामक मुनिवर अथवा जिसने भेजा हो, उस रोगी के उद्देश के उचित कार्य करे अथवा बन्द कान को खो नकर जो स्वयं सुनी हुई उपश्रुति के अनुसार चतुर पुरुष अपनी मृत्यु निकट या दूर है, उसे जान लेते हैं। यह उपश्रति द्वार कहा। अब छाया द्वार में छाया के अनेक भेद हैं, फिर भी यहाँ सामान्य से ही कहते हैं । ४. छाया द्वार :-आयुष्य के ज्ञान के लिए स्थिर मन, वचन, काया वाला पुरुष निश्चय हमेशा ही अपनी छाया को अच्छी तरह देखे, और अपनी परछाई के स्वरूप को अच्छी तरह जानकर शास्त्र कथित विधि द्वारा शुभअशुभ को जाने । इसमें सूर्य के प्रकाश के अन्दर, शीशे में अथवा पानी आदि में शरीर की आकृति, प्रमाण वर्ण आदि से जो परछाई गिरती है उसे निश्चय ही प्रतिछाया जानना। वह प्रतिछाया जिसकी सहसा छेदन-भेदन हुई तथा सहसा यदि आकुल अथवा आकार, माप, वर्ण आदि से कम या अधिक दिखे, रस्सी समान आकार वाली या कण्ठ प्रतिष्ठित (गले तक) दिखे तो कह सकते हैं कि यह पुरुष शीघ्र मरण को चाहता है। और पानी किनारे खड़े होकर सूर्य को पीछे रखकर पानी में अपनी छाया को देखते यदि अलग मस्तक वाली दिखे, वह शीघ्र यम मन्दिर में जायेगा। इसमें अधिक क्या कहें ? यदि मस्तक बिना की अथवा बहुत मस्तक वाली या प्रकृति से असमान विलक्षण स्वरूप वाली अपनी छाया को देखे, वह शीघ्र यम मन्दिर में पहुँचेगा। जिसको छाया नहीं दिखे उसका जीवन दस दिन का, और दो छायाएँ दिखाई दें तो दो ही दिन का जीवन है । अथवा दूसरी तरह से निमित्त शास्त्र द्वारा कहते हैं किसूर्योदय से अन्तमहत तक दिन हो जाने के बाद, अत्यन्त पवित्र होकर सम्यग् उपयोग वाला सूर्य को पीछे रखकर अपने शरीर को निश्चल रखकर शुभाशुभ जानने के लिए स्थिर चित्त से छाया व पुरुष को अपनी परछाई देखे । उसमें यदि अपनी उस छाया को सर्व अंगों से अक्षत सम्पूर्ण देखे तो अपना कुशल जानना। यदि पैर नहीं दिखे तो विदेश गमन होगा। दो जंघा न दिखे तो रोग । गुप्त भाग न दिखे तो निश्चय पत्नी का नाश । पेट न दिखे तो धन का नाश । और हृदय नहीं दिखे तो मरण होता है । यदि बाँयी, दाहिनी भुजा नहीं दिखे तो भाई और पुत्र का नाश होना जानना। मस्तक नहीं दिखे तो छह महीने में
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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