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________________ श्री संवेगरंगशाला १६१ हजार आठ बार जाप करने से उस विद्या की अधिष्ठायिका अंगूठे आदि में उतरती दिखती है। उसके पश्चात् कुमारिका द्वारा वांछित अर्थ (हकीकत) को निःसंशय जान सकते हैं। केवल यह विद्या निश्चल सम्यक्त्व वाले के वांछित को पूर्ण करती है अथवा किसी तपस्वी चारित्र शील गुणों से आकर्षित चित्त वाली यह देवी जगत में ऐसा कुछ भी नहीं है कि उसे साक्षात् नहीं कहे ! तो मरणकाल कहने में उसे कितना समय लगता है ? २. शकुन द्वार :-निरोगी या बिमार आयुष्य का ज्ञान के लिए स्वयं अथवा दूसरे द्वारा शकुन को देखे । इसमें प्रथम निरोगी के लिए कहते हैं-वह देव गुरू को नमस्कार करके परम पवित्र बनकर प्रशस्त दिन घर अथवा बाहर शकुन के भावफल को सम्यग् विचार करे। उसमें सर्प, चहा, कृमिया, चीटी, कीड़े, गिलहरी, बिच्छ आदि की वृद्धि हो और घर में बिल में, दीमक भूमि में छोटे फोड़े समान चीराड, दरार आदि व्रण विशेष और खटमल, जूं आदि का बहुत ज्यादा उपद्रव हो, मकड़ी अथवा जाल बनाने वाले जीव, मकड़ी का जाल, भौंरे, घर में अनाज के कीड़े, दीमक आदि बिना कारण बढ़ती जाए तथा लिपन किया हुआ आदि फट जाए अथवा रंग बदल जाये तो उद्वेग, कलह, युद्ध, धन का नाश, व्याधि मृत्यु संकट आता है और स्थान भ्रष्टता या विदेश गमन होता है अथवा अल्पकाल में घर मनुष्य रहित शून्य बन जायेगा । तथा किसी तरह कभी किसी स्थान पर सुख से सोये हुये निद्रा अवस्था में कौए चोंच से मस्तक के बाल समूह को खींचे तो मरण नजदीक जानना । अथवा उसके वाहन शस्त्र जूते और छत्र को और ढके हुये शरीर को निःशंक रूप में कोआ मारे या काटे वह भी शीघ्र यम के मुख में जाने वाला समझना। यदि आँसू से पूर्ण नेत्र वाला सामान्य पशु अथवा गाय, बैल पैर से पृथ्वी को बहुत खोदे तो उसके मालिक को केवल रोग ही नहीं आता, परन्तु मृत्यु का कारण होता है। यह निरोगी अवस्था वाले के सम्बन्ध में कुछ अल्प शकुन स्वरूप कहा है। अब रोगी सम्बन्धी कुछ कहते हैं, वह सूनो-यदि कुत्ता अपने दाहिने की ओर मुख को मोड़कर अपनी पीठ के अन्तिम विभाग को चाटे तो रोगी एक दिन में मर जायेगा। यदि छाती को चाटे तो दो दिन और पूंछ को चाटे तो तीन दिन तक जीता रहता है, ऐसा श्वान शकुन के ज्ञाता ने कहा है। यदि कुत्ता निमित्त काल के समय में सर्व अंगों को सिकोड़ कर सो रहा हो तो मानो कि बीमार उसी समय मर जाने वाला है । और कुत्ता दो कान हिलाकर और फिर शरीर को मरोड़कर यदि कंपकंपी करे तो रोगी अवश्य मरता है और इन्द्र भी उसकी रक्षा नहीं कर सकता है। खुले मुख वाला लार गिराता कुत्ता
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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