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________________ श्री संवेगरंगशाला १४३ प्रकाश वाला, आकाश मंडल तक पहुँचा हुआ अति ऊँचा, तोरण से मन को आनन्द देने वाला, उड़ते हुए उज्जवल ध्वज पर भी श्रेणी से शोभता अति रम्य, आज्ञा के साथ ही उसका अमल करने लिए अनुरागी सेवक देवों से भरा हुआ, नेत्रों का उत्सव रूप क्रीड़ा करती अप्सराओं से भरा हुआ, श्रेष्ठ रत्न, सुवर्ण और मणिमय, आसन, शयन, छत्र, चामर और कलश वाला तथा पंच वर्ण के मणि, रत्न, पूष्प और दिव्य वस्त्रों से समृद्धशाली, इच्छा के साथ ही उसी समय सभी अनुकुल पदार्थ मिल जाए ऐसा सर्वोत्तम विमान में महद्धिक देव होता है । पुनः वहाँ से च्यवनकर श्रेष्ठ सौभाग्य और रूप वाला, मनुष्यों के मन और नेत्रों को आनन्द देने वाला, निरूपक्रमी, लम्बी निरोगी आयुष्य वाला, लावण्य से पवित्र शरीर वाला, बंदीजन के द्वारा गुण समूह के गीत गवाने वाला, मणि, सुवर्ण, रत्न के शयन, आसन से युक्त प्रासाद के प्रारंग में क्रीड़ा करते मनोच्छित भावों की प्राप्ति वाला महा वैभवशाली, सर्व अतिशयों का भंडार, सर्व दिशा में विस्तृत यशवाला, पुण्यामुबंधी, पुण्यवाला और सम्पूर्ण छह खंड पृथ्वी का भोगी इस मनुष्य लोक में चक्रवर्ती होता है, अथवा अखंड भूमंडल का राजा होता है, अथवा उसका मन्त्री या नगर सेठ या सार्थवाह अथवा महान् धनवान का पुत्र होता है । धन्यात्मा वह वहाँ श्रेष्ठ चारित्न गुण प्राप्तकर उसी जन्म में अथवा तीन या सात भव में नियम से कर्मक्षय करके शीघ्र मोक्ष को भी प्राप्त करता है। इस प्रकार साधुओं को भावपूर्वक बस्ती देने से निष्कलंक और वांछित पूर्ण करने में तत्पर राजा बनने का पुण्य बंधन हो उसमें क्या आश्चर्य है ? आश्चर्य तो पुनः वह है कि अधम गति प्राप्त करने वाला, प्रमाद रूप मदिरा से मूढ़ और मुग्ध कुरूचन्द्र इच्छा बिना भी साधुओं को बस्ती देने से नित्य साधुओं के दर्शन करते उनके पति लेशमात्र राग होने से जाति स्मरण ज्ञान को प्राप्त कर स्वयमेव प्रतिबोध प्राप्त किया था, उसकी कथा इस प्रकार : वसतिदान पर कुरुचन्द्र की कथा ___ लक्ष्मी का कुल भवन समान आश्चर्यों की जन्म भूमि सदृश और विद्याओं का निधान स्वरूप, श्रावस्ती नाम की नगरी थी। वहाँ नमते हुए राजाओं के मस्तक मुकुटों के रत्नों की कान्ति से प्रकाशमान पादयुगल वाला, जगत प्रसिद्ध आदिवराह नामक राजा था उसे अप्रतिम गुण वाला, रूप से प्रत्यक्ष कामदेव समान और युद्ध की कुशलता से वासुदेव के सदृश युद्ध भूमि में सर्व को जीतने की इच्छा वाला, राजा के लक्षणों से युक्त ताराचन्द्र नाम
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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