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( ८६ ) वादरलद्धिअपुण्णा असंखलोया हवंति पत्तेया । तह य अपुण्णा सुहुमा पुण्णा वि य संखगुणगुणिया . भाषार्थ-प्रत्येक वनस्पति तथा वादर लब्ध्यपर्याप्तक जीव हैं ते असंख्यात लोकप्रमाण हैं. ऐसे ही सूक्ष्मअपर्यातक असंख्यात लोकप्रमाण हैं बहुरि सूक्ष्मपर्याप्तक जीव हैं ते संख्यातगुणे हैं। सिद्धा संति अणता सिद्धाहितो अणतगुणगुणिया। होति णिगोदा जीवा भाग अणंता अभव्वा य १५०
भाषार्थ-सिद्धजीव अनन्ते हैं बहुरि सिद्धनिः अनन्त गुणें निगोद जीव हैं बहुरि सिद्धनिके अनन्तवे भाग अभव्य जीव हैं। सम्मुच्छिया हु मणुया सेढियसंखिज्ज भागीमत्ता हु गब्भजमणुया सव्वे संखिज्जा होति.णियमेण १५१ ___ भाषार्थ-सम्मुर्डन मनुष्य हैं ते जगतश्रेणीके असंख्यातवे भागमात्र हैं बहुरि गर्भज मनुष्य हैं ते नियमकरि संख्यात
आगे सान्तर निरन्तरकुं कहै हैंदेवा वि णारया वि य लद्धियपुण्णा हु संतरा होंति सम्मुच्छ्यिा विमणुया सेसा सव्वे णिरंतरया ॥१५२॥ भाषार्थ-देव तथा नारकी बहुरि लब्ध्यपर्याप्तक बहुरि सम्मू