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________________ हेतुविचय विरागविचय भवविचय संस्थानविषय. ऐसे इनि दनिका चितवन सो ए च्यारि भेदनिका विशेष कीये हैं. बहुरि पदस्थ पिंडस्थ रूपस्थ रूपातीत ऐसे च्यारि भेदरूप धर्मध्यान होय है. तहां पद तौ अक्षरनिके समुदायका नाम है सो परमेष्ठीके वाचक अक्षर हैं जिनकू मंत्र संज्ञा है सोतिनि अक्षरनिक प्रधानकरि परमेष्ठीका चितवन करै तहां विस अक्षरमें एकाग्रचित्त होय सो तिसका ध्यान कहिये । तहां नमोकार मन्त्रके पैंतीस अक्षर हैं ते प्रसिद्ध हैं तिनिविषै मन लगावै तथा तिस ही मन्त्रके भेदरूप कीये संक्षेप सोलह अ. क्षर हैं "अरहंत सिद्ध पाइरिय उवज्झाय साँहू" ऐसे सोलह अक्षर हैं. बहुरि इसहीके भेदरूप 'अरहंत सिद्ध' ऐसे छह अक्षर हैं बहुरि इसहीका संक्षेप " असिग्राउ सा" ये आदिअक्षररूप पांच अक्षर हैं. बहुरि "अरहंत" ए च्यारि अक्षर हैं. बहुरि "सिद्ध" अथवा "अह" ऐसे दोय अक्षर हैं बहुरि "30" ऐसा एक अक्षर है. यामें पंचपरमेष्ठीका आदि सूक्ष्म जिनोदितं तत्त्वं हेतुभिर्नैव हन्यते । आज्ञासिद्व तु तद्ग्राह्यं नान्यथावादिनो जिनाः ॥ पदस्थं मन्त्रवाक्यस्थं पिण्डस्थं स्वात्मचिन्तनं । रूपस्थं सर्वचिदूपं रूपातीतं निरंजनं ॥ [२] अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः । [३] णमो अरहताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरीयाणं । णमो उवझायाणं णमो लोए सव्वसाढणं ॥१॥
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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