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________________ ( २४४ ) • तिस भव्य वात्सल्यगुण होय है. भावार्थ - वात्सल्य गुण में धर्मानुराग प्रधान है उत्कृष्टकरि धर्मात्मा पुरुषनिसूं जाकै भक्ति अनुराग होय तिनिमें प्रियवचन सहित प्रवचै तिनिकूं भोजन गमन आगमन आदिकी क्रियाका अनुचर होय प्रवर्ते, गाय बछरेकीसी प्रीति राखे ताकेँ बात्सल्य गुण होय है ॥ ४२० ॥ आगे प्रभावना गुणकं क है हैं, - जो दसभेयं धम्मं भव्वजणाणं पयासदे विमलं । अप्पाणं पि पयासदि णाणेण पहावणा तस्स २१ भाषार्थ - जो सम्यग्दृष्टी दशभेदरूप धर्मकौं भव्य जी - afts free अपने ज्ञानकरि प्रगट करें तथा अपनी आमrat दशप्रकार धर्मकरि प्रकासै ताकै प्रभावना गुण होय है. भावार्थ - धर्मका विख्यात करना सो प्रभावना गुण है. सो उपदेशादिककरि तौ परके विषै धर्म प्रगट करै, अर - ना आत्माकौं दशविध धर्म अंगीकारकरि कर्म कलंकतै रहितकरि प्रगट करै ताकेँ प्रभावना गुण होय है ।। ४२१ ॥ जिणसासणमाहप्पं बहुविहजुचीहिं जो पयासेदि । तह तिब्वेण तवेण य पहावणा णिम्मला तस्स २२ भाषार्थ - जो सम्यग्दृष्टी पुरुष अपने ज्ञानके बलतें अनेक प्रकार युक्तिकरि बादीनिका निराकरणकार तथा न्याय व्याकरण छंद अलंकार साहित्य विद्याकरि वक्तापणा वा शास्त्र- : #
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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