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________________ (२२६) समिति है. ऐसे पांच समिति पाल तिनिके संयम पले है. जाते ऐसा कया है जो यत्नाचार प्रवते है ताके वाद्य जीव कू वाधा होय तौऊ बंध नाहीं है अर यत्नरहित प्रवत है ताके बाह्य नीव मरो तथा मति मरो बंध अभ्य होय है.ब. हुरि अपहृत संयमके पालनेके अर्थ आठ शुद्धीनिका उपदेश है. भावशुद्धि १ कायशुद्धि २ विनयशुद्धि ३ ईपिथशुद्धि ४ भिक्षाशुद्धि ५ प्रतिष्ठापनाशुद्धि ६ शयनासनशुदि ७ वाक्यशुद्धि८। तहां भावशुद्धि तौ कर्मका क्षयोपशमजनित है सो तिस विना तौ प्राचार प्रकट नहीं होय. शुद्ध उज्वल भीतिमें चित्राम शोभायमान दीख जैसें. बहुरि दिगंबररूप सर्व विकारनित रहित यत्नरूप जाविषै प्रवृति शान्त मुद्रा जाळू देखै अन्यकै भय न उपजै तथा पाप निर्भय रहै ऐसी का. यशुद्धि है. बहुरि जहां अरहंत आदिविषै भक्ति गुरुनिके अ. नुकूल रहना ऐसे विनयशुद्धि है. बहुरि मुनि जीवनिके ठिकाने सर्व जाने हैं तातें अपने ज्ञानत सूर्यके उद्योगते नेत्र इंद्रियसे मार्ग• प्रतियत्नतै देखिकरि गमन करना सो ईपिथशुद्धि है. बहुरि भोजनकू गमन करै तब पहले तो अपने मल मृत्रकी बाधाकू परखै, अपना अंग• नीकै प्रतिलेख, बहुरि आचार सूत्रमें कह्या तैसे देश काल स्वभाव विचारै. बहुरि एती जायगां पाहारकौं प्रवेश कर नाही. गीत नृत्य वादिघकी जिनकै आजीविका होय, तिनके घर जाय नाही. जहां प्रसूति भई होय तहां जाय नाही. जहां मृत्यु भई होय तहां
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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