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________________ (२२४) जीव न देखि आगम अनुसार कहै कि यह प्रासुक है १. ब. हुरि जो भागमगोचर वातु है तिनिळू आगमके वचनानुपार कहना सो स्.मयसत्य है जैसे पल्य सागर इत्यादिक कहना १०, बहुरि दशप्रकार सत्यका कथन गोम्मटसारमें है तहां सात नाम तो येही हैं अर तीनके नाम इहां तौ देश, संयोजना, समय हैं अर तहां, संभावना, व्यवहार, उपपा ए हैं. बहुरि उदाहरण अन्य प्रकार हैं सो विवक्षाका भेद जानना. विरोध नाही. ऐसे सत्यकी प्रवृत्ति होय है सो जिनसूत्रानुसार वचन प्रवृत्ति करै ताकै सत्यधर्म होय है ॥ ३९८ ॥ ___ आगें उत्तम संयमधर्म कहै हैं,जो जीवरक्खणपरो गमणागमणादिसव्वकम्मेसु । तणछेदं पि ण इच्छदि संजमभावो हवे तस्स ३९९ भाषार्थ-जो मुनि गमन आगमन भादि सर्व कार्यनि विषै तृणका छेदमात्र भी नाहीं चाहै न करै . कैसा है मुनि ? जीवनकी रक्षाविषे तत्पर है ऐसे मुनिकै संयमभाव होय हैं. भावार्थ-संयम दोय प्रकार कह्या है इन्द्रिय मनका वश करणा पर छह कायके जीवनिकी रक्षा करनी. सो इहां मुनिके आहार विहार करनेविर्ष गमन आगमन आदि का काम पडै तिनि कार्यनिमें ऐसे परिणाम रहैं जो मैं तृण मात्रका भी छेद नाहीं करूं. मेरा निमित्त काहूका अहित न होय, ऐसे यत्नरूप प्रव” है जीवदयाविष ही तत्पर रहै है. इहां टीकाकार अन्य ग्रंयनित संयमका विशेष वर्णन
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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