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________________ ( २०९) वक रात्रि भोजनका त्यागी होय है. भावार्थ - रात्रि भोजनका तौ मांतके दोषकी अपेक्षा तथा रात्रिविधै बहुत प्रारंभतें त्रसघातकी अपेक्षा पहली दुजी प्रतिमामें ही त्याग कराये हैं परंतु यहां कृत कारित अनुमोदना अर मन वचन कायके कोई दोष लागै तातें शुद्धत्याग नाहीं. इहां प्रतिमाकी प्रतिज्ञाविषै शुद्ध त्याग होय है ता प्रतिमा कही है ।। ३८२ ॥ जो णिसिभुतिं वज्जाद सो उववास करेदि छम्मा सं संवच्छरस्स मज्झे आरंभं मुयदि रयणीए ॥ ३८३ ॥ भाषार्थ - जो पुरुष रात्रि भोजन कौं छोडै है सो वरस दिनमें छह महीनाका उपवास करें है. बहुरि रात्रि भोजनके त्यागर्तें भोजन संबंधी आरंभ भी त्याग है. बहुरि व्यापार थादिका भी प्रारंभ छोडें है सो महान दया पालै है . भावार्थजो रात्रि भोजन त्यागै सो वरसदिनमें छह महीनाका उपवास करें है. बहुरि अन्य आरंभका भी रात्रि में त्याग करै है बहार अन्य ग्रंथनिमें इस प्रतिमाविषै दिनमें स्त्री सेवनका भी मनवचनकाय कृतकारित अनुमोदनाकरि त्याग का है. ऐ रात्रिभुक्तत्यागप्रतिमाका निरूपण कीया. यह प्रतिमा छडी बारह भेदनिमें सातवां भेद भया ।। ३८३ ॥ या ब्रह्मचर्य प्रतिमाका निरूपण करै है, सव्वेसि इत्थीणं जो अहिलासं ण कुव्वदे णाणी । मण वाया कायेण य बंभबई सो हवे सदिओ ३८४ १४ ---
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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