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________________ भावार्य- सर्वज्ञ देव सर्वे द्रव्य क्षेत्र काल भावकी अवस्था नाण है. सो जो सर्वज्ञके ज्ञानमें प्रतिमास्या है सो नियमकरिहोय है तामें अधिक हीन किछु होता नाहीं ऐसे सम्यदृष्टी विचार है ।। ३२१-३२२ ।। ___आगें ऐसे बौ सम्यग्दृष्टी है अर यामें संशय करै सो मिथ्यादृष्टी है ऐसें कहै हैं,- - एवं जो णिच्चयदो जाणदि दव्वाणि सव्वपजाए । सो सद्दिट्ठो सुद्धो जो संकदि सो हुँ कुदिट्ठो ३२३ ___ भाषार्थ-या प्रकार निश्चयते सर्व द्रव्य जीव पुद्गल धर्म अधर्म प्राकाश काल इनिकू बहुरि इनि द्रव्यनिकी सर्व पर्यायनिकू सर्वझके प्रागमके अनुसार जाणे है श्रदान करै है सो शुद्ध सम्यग्दृष्टी होय है. बहुरि ऐसे श्रद्धान न करैशंका संदेह कर है सो सर्वशके आगमतै प्रतिकूल है प्रगटपणे मिथ्यादृष्टी है ॥ ३२३ ॥ प्रागें कहै हैं जो विशेष तत्त्वकू नाहीं जान है अर जिनवचनविष प्राज्ञा मात्र श्रद्धान कर है सो भी श्रद्धावान कहिये है,-- जोण वि जाणइ तच्चंसोजिणवयणे करेइ सदहणं जंजिणवरेहिं भाणयं तं सव्वमहं समिच्छामि ३२४ ___ भाषार्थ-जो जीव अपने ज्ञानावरणके विशिष्ट क्षयोपशमाविना तथा विशिष्ट गुरुके संयोगविना तत्त्वार्थकू नाही
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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