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________________ (१३९) सो संगहेण इक्को दुविहो वि य दवपज्जएहितो। तोस च विसेसादो णइगमपहुदी हवे गाणं २६८ ____ भाषार्थ-सो नय संग्रहकरि कहिये सामान्यकरि तौ एक है. द्रव्यर्थिक पर्यायार्थिक भेदकरि दोय प्रकार है. बहुरि विशेषकरि तिनि दोऊनिके विशेषतनै गमेनया आदि देकर हैं सो नय हैं ते ज्ञान ही हैं ॥२६ ॥ __ श्रागें द्रव्यनयका स्वरूप कहै हैं,जो साहदि सामण्णं अविणाभूदं विसेसरूवहिं। णाणाजुत्तिबलादो दव्वत्थो सो णओ होदि २६९ भाषार्थ-जो नय वस्तुकू विशेषरूपनि अविनाभूत सामान्य स्वरूकू नाना प्रकार युक्तिके बलते साधै सो द्रव्यार्थिक नय है. भावार्थ-वस्तुका स्वरूप सामान्यविशेषात्मक है सो विशेषविना सामान्य नाहीं ऐसे सामान्यकू युक्तिके बलः साधै सो द्रव्यार्थिक नय है ॥ २६९॥ . ___ आगें पर्यापार्थिक नयकू कहै हैं,जो साहेदि विसेसे बहुविहसामण्ण संजुदे सव्वे। साहणलिंगवसादो पज्जयविसयो णयो होदि २७० भाषार्थ-जो नय अनेक प्रकार सामान्यकरि सहित सर्व विशेष तिनिके साधनका जो लिंग ताके वश साधै सो प. र्यायार्थिक नय है. भावार्थ-सामान्य सहित विशेषनिकू हेतुहैं साथै सो पर्यायार्थिक नय है. जैसे सत् सामान्य करि स.
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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