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________________ ५६६ ज्ञानसार ११. कल्याण प्रवाद | ज्ञान, तप आदि शुभ योगों की सफलता और २६ क्रोड पद प्रमाद, निद्रा आदि अशुभ योगों के अशुभ फल का वर्णन । १२. प्राणायु इस पूर्व में जीव के दस प्राणों का वर्णन और १ क्रोड ५६ लाख पद जीवों के आयुष्य का वर्णन किया गया है । १३. क्रिया विशाल इस पूर्व में कायिकी आदि क्रियाओं का उनके भेद ९ क्रोड पद प्रभेद के साथ वर्णन किया गया है । १४. लोक बिन्दुसार जैसे श्रुतलोक में अक्षर के ऊपर रहा हुआ बिन्दु १२॥ क्रोड पद श्रेष्ठ है उसी तरह 'सर्वाक्षर सन्निपात लब्धि' प्राप्त करने | के इच्छुक साधक के लिए यह पूर्व सर्वोत्तम है । पूर्व का अर्थ क्या ? ___ यह पूर्व शब्द शास्त्र, ग्रन्थ जैसे अर्थ में उपयोग किया गया शब्द है। तीर्थंकर जब धर्मतीर्थ की स्थापना करते हैं तब पूर्व का उपदेश देते हैं। फिर गणधर इन उपदेशों के आधार पर 'आचारांग' आदि सूत्रों की रचना करते हैं । २१. पुद्गलपरावर्त काल जहाँ गणित का प्रवेश असम्भव है, ऐसे काल को जानने के लिए 'पल्योपम' 'सागरोपम' 'उत्सर्पिणी' 'अवसर्पिणी' 'कालचक्र' 'पुद्गल परावर्त' जैसे शब्दों का सर्जन किया गया है। ऐसे शब्दों की स्पष्ट परिभाषा ग्रन्थों में दी गई है। यहाँ अपन 'प्रवचन सारोद्धार' ग्रन्थ के आधार पर 'पुद्गल परावर्त' काल को समझेंगे । १० कोडा कोडी (१० x १० क्रोड) सागरोपम = १ उत्सर्पिणी __ = १ अवसर्पिणी ऐसे' अनंत उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी का समूह तब एक पुद्गल परावर्त कहा जाता है । अतीत काल अनन्त पुद्गलपरावर्त का होता है । १. 'ओसप्पिणी अणंता पोग्गल परियट्टओ मुणेयव्वो। तेऽणंता तीयद्धा अणागयद्धा अणंतगुणा ।'
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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