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________________ ५३८ ज्ञानसार उदाहरण : गौ : (गाय) शब्द का प्रयोग उस समय ही सत्य कहा जा सकता है जबकि वह गमनक्रिया में प्रवृत्त हो, क्योंकि गौः शब्द का व्युत्पत्ति अर्थ है-'गच्छतीति गौः ।' गाय खड़ी हो कि बैठी हो, तब उसके लिये गौः (गाय) शब्द का प्रयोग नहीं हो सकता, ऐसा यह नय मानता है । इस प्रकार यह नय क्रिया में अप्रवृत्त वस्तु को शब्द से अवाच्य मानता होने से मिथ्यादृष्टि है। 'क्रियानाविष्टं वस्तु शब्दवाच्यतया प्रतिक्षिपन्नेवंभूताभासः ।' -जैन तर्कभाषा ‘क्रिया में अप्रवृत्त वस्तु शब्दवाच्य नहीं है, ऐसा कहनेवाला यह नय 'एवंभूताभास' है।' इस प्रकार सात नयों का स्वरूप संक्षेप से प्रस्तुत किया गया है । विशेष जिज्ञासावाले मनुष्य को गुरुगम से जिज्ञासा पूर्ण करनी चाहिये । निश्चयनय-व्यवहारनय 'तात्त्विकार्थाभ्युपगमपरस्तु निश्चय ।'-जैन तर्कभाषा निश्चय नय तात्त्विक अर्थ का स्वीकार करता है। 'भ्रमर' को यह नय पञ्चवर्ण का मानता है । पाँच वर्ण के पुद्गलों से उसका शरीर बना हुआ होने से भ्रमर तात्त्विक दृष्टि से पाँच वर्णवाला है अथवा तो निश्चय नय की परिभाषा इस प्रकार से भी की जाती है : 'सर्वनयमतार्थग्राही निश्चयः' सर्व नयों के अभिमत अर्थ को ग्रहण करनेवाला निश्चय नय है। प्रश्न : सर्वनय अभिमत अर्थ को ग्रहण करते हुए वह प्रमाण कह लायेगा तो फिर नयत्व का व्याधात नहीं होगा ? उत्तर : निश्चय नय सर्वनय-अभिमत अर्थ को ग्रहण करता है, फिर भी, उनउन नयों के अभिमत स्व-अर्थ की प्रधानता को स्वीकार करता है, इसलिये उसका अन्तर्भाव 'प्रमाण' में नहीं होता। 'लोकप्रसिद्धार्थानुवादपरो व्यवहार नयः' लोगों में प्रसिद्ध अर्थ का अनुसरण करनेवाला व्यवहार नय ही है। जिस प्रकार लोगों में 'भ्रमर' काला कहा जाता है, तो व्यवहार नय भी भ्रमर को काला मानता है अथवा 'एकनयमतार्थग्राही व्यवहारः' किसी एक नय के अभिप्राय का अनुसरण करनेवाला व्यवहार नय कहा जाता है।
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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