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________________ विशेष शब्द केवल सुख अनन्त चतुष्टय : केवली में केवल ज्ञान, केवल दर्शन, और केवल शक्ति की अनन्तता के कारण इन चारों को अनन्त चतुष्टय कहकर संकेतित किया जाता है । अरिहन्त के एक हज़ार आठ लक्षण : श्री वृक्ष, शंख, कमल, स्वस्तिक, अंकुश, तोरण, चमर, सफ़ेद छत्र, सिंहासन, पताका, दो मीन, दो कुम्भ, कच्छप, चक्र, समुद्र, सरोवर, विमान, भवन, हाथी, सूर्य, चन्द्र फल सहित उपवन, पृथ्वी, लक्ष्मी, सरस्वती, स्वर्ण, कल्पलता, आठ प्रातिहार्य, आठ मंगल द्रव्य आदि एक सौ आठ लक्षण और मसूरिया आदि नौ सौ व्यंजन इस प्रकार कुल १००८ लक्षण अरिहन्त के शरीर में विद्यमान होते हैं । आठ प्रातिहार्य : अशोक वृक्ष, तीन छत्र, रत्नखचित सिंहासन, भक्तियुक्त गणों से वेष्टित होना, दुन्दुभिनाद, पुष्पवृष्टि, भामण्डल ( प्रभामण्डल) और चौंसठ चमर युक्तता । आठ प्रकार के कर्म : ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, मोहनीय, अन्तराय और वेदनीय, आयु, नाम, तथा गोत्र । आरम्भ : नौकरी, खेती, व्यापार आदि सावद्य कर्म । आहार के छियालीस दोष: उद्गम, उत्पादन, अशन, प्रमाण, संयोजन, अंगार अथवा आगार और धूम के तहत उद्गम दोष के औदेशिक आदि सोलह, उत्पादन दोष के धात्री आदि सोलह, अशन दोष के शंकित आदि दस भेद और प्रमाण, संयोजन (ठण्डे भोजन में गरम जल या गरम भोजन में ठण्डा जल मिलाना ) अंगार (तृष्णापूर्वक आहार करना) तथा धूम ( ग्लानिपूर्वक आहार करना) ये चार दोष । ईर्या समिति : दिन में चार हाथ प्रमाण देखकर इस प्रकार चलना ताकि प्राणियों को पीड़ा न पहुँचे । उपगूहन : शुद्ध मोक्ष मार्ग का पथिक भी अज्ञान अथवा असमर्थतावश 128
SR No.022293
Book TitleAtthpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkundacharya, Jaykumar Jalaj, Manish Modi
PublisherHindi Granthratna Karyalay
Publication Year2008
Total Pages146
LanguagePrakrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size9 MB
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