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________________ अरुहा सिद्धायरिया उज्झाया साहु पंच परमेठ्ठी । विहु चिट्ठहि आम्हा आदा हु मे सरणं ॥ ४३६॥ अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये जो पाँच परमेष्ठी हैं ये भी स्पष्टतः आत्मा के भीतर ही अवस्थित हैं। इसलिए साफ़ तौर पर आत्मा ही मेरे लिए शरण है। सम्मतं सण्णाणं सच्चारितं हि सतवं चेव । चउरो चिट्ठहि आदे तम्हा आदा हु मे सरणं ॥ ४४०॥ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप ये चारों आत्मा के भीतर ही अवस्थित हैं। इसलिए साफ़ तौर पर आत्मा ही मेरे लिए शरण है । एवं जिणपण्णतं मोक्खस्स य पाहुडं सुभक्त्तीए । जो पढइ सुइ भावइ सो पावइ सासयं सोक्खं ॥४४१॥ जिनेन्द्र भगवान् द्वारा कहे गए इस प्रकार के मोक्ष पाहुड को जो व्यक्ति पढ़ता है, सुनता है, चिन्तवन करता है उसे शाश्वत सुख यानी मोक्ष की प्राप्ति होती है। 113
SR No.022293
Book TitleAtthpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkundacharya, Jaykumar Jalaj, Manish Modi
PublisherHindi Granthratna Karyalay
Publication Year2008
Total Pages146
LanguagePrakrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size9 MB
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