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________________ [ ६२ ] शास्त्रोंमें और जिनधर्म वा मोक्षमार्ग में श्रद्धा रखता है पुराणशास्त्रों के पढने पढाने में जिनधर्मकी वृद्धि और मोक्षमार्गकी वृद्धि में सदा प्रयत्न करता रहता है. जो श्रेष्ठ चारित्रके पालन करनेमें अपनी निर्मल प्रवृत्ति रखता परलोक के कार्यों में आस्तिक्य रखता है तथा जो सज्जन और धर्मात्मा पुरुषोंमें वात्सल्यभाव धारण करता है उसी महापुरुषकी कीर्ति इस संसार में सर्वत्र वर्णन करते रहना चाहिये ।। ११० ॥ १११ ॥ संसारतापततानां के वा विश्रांतिहेतवः ? प्रश्नः - हे गुगे ! जो जीव संसार के संतापसे तप्तायमान हैं उनकी विश्रांतिके कारण क्या हैं ? दहतां जनानां, संसारव विश्रांतिहेतोर्वरकारणानि । षडेव वेद्यानि तमोहराणि, शान्त्यादिकानि स्वसुखप्रदानि ॥ ११२ ॥ सदा विवेकः समशांतिसम्पत्, संसारभोगेषु विरक्तबुद्धिः । अध्यात्मविद्या निजराज्यदात्री, सम्यक् प्रवृत्तिः स्वपदे निवासः ॥ ११३ ॥
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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