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________________ [ ४९ ] अपने आत्माका घात करनेवाला और अन्य जीवोंका घात करनेवाला समझना चाहिये ।। ८७ । ८८ ॥ को धीमान्पुरुषो देव ! मनुजोऽपि पशुश्च कः ? प्रश्न: - हे देव ! चतुर मनुष्य कौन है तथा मनुष्य होते हुए भी पशु के समान कौन है ? विचार्य सम्यक् च पुनः पुनर्यो, ब्रवीति भाषां सुकृतिं करोति । जिनानुयायी मनुजः स एव, श्रीमांश्च धीमान् निपुणः कृतज्ञः ॥८९॥ विचार्य सम्यङ्न पुनः पुनयों, ब्रवीति भाषां न कृतिं करोति । कुमार्गगाम्येव पशुः स लोके, श्रीमान् दरिद्रश्चतुरोऽपि मूर्खः ॥ ९० ॥ उत्तरः – जो मनुष्य अच्छी तरह बार बार विचार कर वचन कहता है और अच्छी तरह बार बार विचार कर ही काम करता है तथा जो भगवान् जिनेन्द्रदेवके कहे हुए वचनों के अनुकूल चलता है उसीको श्रीमान् समझना चाहिये, उसीको धीमान् वा बुद्धिमान समझना चाहिये तथा उसीको चतुर और कृतज्ञ समझना चाहिये । इसी
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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