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________________ [ ४२ ] है उसी प्रकार सुख देनेवाले उस कार्यको करता है ।" सर्वस्व नष्ट होनेपर भी जो अन्यथा नहीं करता उसको मध्यम राजा कहते हैं । जो राजा अपनी इच्छानुसार ' मैं यह करूंगा यह करूंगा' इस प्रकार जहां तहां कहता फिरता है किंतु अपना और दूसरोंका कल्याण करनेवाला कोई भी कार्य किंचितरूप भी नहीं करता उस मूर्खको अधमराजा कहते हैं ।। ७५ ।। ७६ ।। ७७ ॥ धर्मार्थकाममोक्षाणां कः क्रमः किं च कारणम् ? प्रश्नः - धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थीका क्रम क्या है और कारण क्या है ? अर्थस्य मूलं कथितोऽस्ति धमों, धर्मार्थयुग्मं भुवि काममूलम् । मोक्षस्य मूलं स्वरसस्य पानं, विना सुमूलान्न तरुः प्रवर्द्धते ॥७८॥ धर्मेण चार्थः खलु तेन कामः, पश्चाद्धि मोक्षोऽपि भवेद्ध्रुवं हि । चलन्ति ये ते कथितक्रमेण, राज्यं स्वराज्यं स्वसुखं लभन्ते ॥ ७९ ॥
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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