SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [४०] दोषी पुरुष जबतक दोषोंको ग्रहण नहीं कर लेता तबतक उसे सुख शांति कभी नहीं मिलती ॥ ७२ ॥७३॥ हिंसा हिंसा गुरो ! कास्ति संक्षेपेण वदाद्य भोः ! प्रश्न-हे गुरो ! हिंसा क्या है और अहिंसा क्या है संक्षेपसे आज दोनोंका स्वरूप बतलाइये ? संसारहंत्री निजबुद्धिरेवाहिंसास्ति, हिंसा परबुद्धिरेव । श्रीकुंथुनाम्ना मुनिनेव वा, मोक्षाय निंद्या परबुद्धिरेव ॥७॥ उत्तरः-संसारको हरण करनेवाली जो आत्मबुद्धि है, आत्माके स्वरूपको ग्रहण करनेवाली जो बुद्धि है उसको आहिंसा कहते हैं। तथा परपदार्थोंको ग्रहण करनेवाली जो बुद्धि है उसको हिंसा कहते हैं। जिस प्रकार कुंथुसागर नामके मुनिने मोक्ष प्राप्त करने के लिये निंदनीय परबुद्धि का त्याग करदिया है उसी प्रकार मोक्ष प्राप्त करनेके लिये समस्त भव्य जीवोंको निंदनीय परबुद्धिका त्याग कर देना चाहिये ॥ ७४॥ उत्तमो मध्यमो राजा कोऽधमो वद भी गुरो ! प्रश्न:-हे श्रीगुरो ! यह बतलाइये कि इस संसारमें उत्तम राजा कौन है, मध्यम राजा कौन है और अधम राजा कौन है ?
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy