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________________ समझ में आता है । जिन्होंने भक्तिपूर्वक आपका एक दफे दर्शन किया हो उनको आपकी महत्ताका परिज्ञान हुए विना नहीं रहसकता है। एकदफे आपके सामने कोई क्रूर हृदयी शत्रु भी क्यों न आवे; आपकी शांतमुद्राको देखकर वह द्रवित हो जाता है। इतना ही क्यों बडेसे बडे क्रूर मृग, विषधर आदि भी शांत हो जाते है । आपका माहात्म्य इसीसे स्पष्ट है कि कई दफे प्राणकंटक उपसर्ग आनेपर भी उनसे महाराजकी सिंहवृत्तिमें कोई विराधना नहीं हो सकी। ऐसे प्रातःस्मरणीय साधुवोंके दर्शन, स्तवन व वैयावृत्यके लिये ही नहीं नामोचरण करने के लिये भी पूर्वोपार्जित . पुण्यकी आवश्यकता है। यह सर्वसाधारणके लिये सुगम नहीं है। __महर्षि कुंथुसागर महाराजमे पूर्वभव में भी विशिष्ट तपश्चर्या की होगी जिससे कि उन्हे महर्षि शांतिसागर महाराज सदृश गुरुवोंकी प्राप्ति हुई व उन्हीके पाद मूल में उन्ही के चरित्र चित्रण करने का भी भाग्य मिला यह साहजिक है । आत्मसंयमका फल व्यर्थ नहीं जाया करता है। आचार्य महाराजका चरित्र श्री पूज्य कुंथुसागर महाराजने पहिले लिखा था। यह दूसरा ग्रंथ है। ग्रन्थकर्ताका परिचय । महर्षि कुंथुसागरजीने इस ग्रंथकी रचना की है । आप एक परम वीतरागी, प्रतिभाशाली, विद्वान् मुनिराज हैं। आपकी जन्मभूमि कर्नाटक प्रांत है जिसे पूर्वमें कितने ही महर्षियोंने अलंकृत कर जैन धर्मका मुख उज्वल किया था।
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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