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________________ [२०] सदा प्रयत्न करते रहना ये सम्यग्दर्शनके चिन्ह हैं । अथवा पांचों इन्द्रियोंके द्वारा और मनके द्वारा जो ज्ञान, दर्शन होता है उस ज्ञान दर्शनके मार्गको हटाकर केवल अपने आत्मा के दर्शन ज्ञानके लिये अपने ही आत्मामें अपने आत्माके द्वारा अपने ही आत्माको जानना, देखना वा अपने आत्माका ज्ञान दर्शन संपादन करना, प्रयत्न पूर्वक उसीका चिंतन करना निश्चय सम्यग्दर्शनका चिन्ह है। इसप्रकार ये सम्यग्दर्शनके चिन्ह हैं ॥३५॥३६॥३७॥ मिथ्यादृशश्च सदृष्टाः कथं कालं नयन्ति भोः। प्रश्नः-हे स्वामिन् ! सम्यग्दृष्टी और मिथ्यादृष्टी अपने समयको किस प्रकार बिताते हैं ? सदृष्टिजीवा गमयन्ति कालं, वैराग्यबुद्धया निजचिन्तनेन । मिथ्यात्वमूढाः कलहैरुपतैः, भोगोपभोगौर्वविधप्रकारैः ॥३८॥ उत्तरः-सम्यदृष्टी जीव अपने हृदयमें वैराग्य धारण कर तथा अपने आत्माका चिंतन कर अपना समय व्यतीत करते हैं तथा अज्ञानी-मिथ्यादृष्टी जीव कलह करके अथवा प्राप्त हुए अनेक प्रकारके भोगोपभोगोंको सेवन करके अपना समय व्यतीत करते हैं ॥ ३८ ॥
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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