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________________ [१५] उत्तरः – जो पुरुष भक्ति पूर्वक सदा धर्मको धारण करता है वही पुरुष इस संसार में मनोज्ञ कहलाता है, वही स्वामी कहलाता है, वही वीर और श्रीमान् कहलाता है वही दानी और बलवान् कहलाता है, वही धीर वीर कहलाता है, वही ज्ञानी कहलाता है वही योग्य कहलाता है ant निर्मल कहलाता है और वही राजा वा सबका स्वामी कहलाता है ||२७|| ज्ञानहीना नरा लोके । शोभन्ते वा न वा क्वचित् ॥ प्रश्न: - हे गुरो ! क्या ज्ञानहीन मनुष्य कहीं शोभा देते हैं वा नहीं ? 1 वस्त्रादिमाल्यैः परमैः सुलिंगैः सुसंस्कृतानां च नृणां मुनीनाम् ॥ सुज्ञानहीनं न च भाति रूपं । वचोपि तेषां न वपुर्न जन्म ॥२८॥ उत्तरः- जो मनुष्य वखाभूषण वा माला आदिसे सुशोभित है अथवा जो मुनिश्रेष्ठ जिनलिंगसे सुशोभित हैं ऐसे मुनि वा मनुष्यों का स्वरूप सम्यग्ज्ञानके विना कभी शोभा नहीं देता । इतना ही नहीं किंतु सम्यग्ज्ञानके विना न तो उनके वचन शोभा देते हैं न उनका शरीर शोभा देता है और न उनका जन्म सुशोभित होता है || २८ ॥
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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