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________________ [११] प्राणेषु को सत्सु गतेषु केपि। जविा भवेयुर्न च धर्महीनाः ॥२०॥ यही समझकर भव्य जीवोंको शीघ्र ही अपना मोह छोडकर सदाकाल धर्म धारण करते रहना चाहिए । इस संसारमें प्राणोंका नाश होने पर भी जीवको कभी भी धर्मरहित नहीं होना चाहिए ॥२०॥ कानि धर्मस्य चिन्हानि । लोकेस्मिन् त्रिजद्गरो॥ प्रश्न:-हे तीनों लोकोंके गुरु ! इस संसार में धर्मके कौन कौन चिन्ह हैं ? धर्मस्य चिन्हं प्रतिपाद्यते हि। क्षमादिवर्गं च तपो जपोपि ॥ व्रतोपवासो यजनं सुदानं ॥ शान्तिः सुशीलं समता दया हि ॥२१॥ धर्मो ह्यहिंसा ह्यनृतं ह्यचौर्यं । त्यागो ह्यसंगो मिथुनस्य लोके ॥ निजात्मधर्मे स्वपदे स्थिरत्वं । ध्यानं प्रभावा स्वरसस्य पानम् ॥२२॥ उत्तरः-हे शिष्य ! अब मैं धर्मके चिन्होंको कहता हूं, तू सुन । उत्तम क्षमा आदि दशधाका समूह ही धर्म
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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